क्रेडिट की जंग चंद्रयान पर... नेहरू से मोदी तक जानें किसका कैसा रहा काम

चंद्रयान 3 को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच घमासान शुरू हो गया है। कांग्रेस पार्टी के ट्विटर हैंडल ने इसकी शुरुआत की। छत्तीसगढ़ के सीएम ने भी इसके लिए देश के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू को श्रेय दिया। बीजेपी सरकार इसे शुरू से ही अपनी उपलब्धि बताती रही है। आइए देखते हैं कि मून मिशन की नींव रखने वाले और छत डालने वाले में किसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।
नई दिल्ली। चंद्रयान-3 अपने मिशन में सफल हो गया है, लेकिन उसकी लैंडिंग से पहले ही श्रेय लेने की होड़ शुरू हो गई थी। कांग्रेस ने ट्वीट करके पूछा कि चंद्रयान मिशन की शुरुआत किस प्रधानमंत्री के काल में हुई? जाहिर है कि पार्टी का इशारा पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की ओर था, जिनके कार्यकाल में 2008 में पहली बार चंद्रयान पर काम शुरू हुआ। छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि 'जिसकी आधारशिला नेहरू ने रखी, उसका आज पूरी दुनिया में डंका बज रहा है। इस तरह की बयानबाजी चंद्रयान-2 की लांचिंग पर भी हुई थी। जब पूरी कांग्रेस पार्टी ही श्रेय लेने के लिए कूद पड़ी थी। जयराम रमेश, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे सभी ने इसे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपलब्धि बताया था। दूसरी ओर बीजेपी के शासन काल में अगर उपलब्धियां हासिल हो रही हैं तो जाहिर है कि वो भी इसका श्रेय लेगी। इस सियासी नूराकुश्ती के बीच समझते हैं कि नेहरू से लेकर मोदी सरकार तक स्पेस मिशन को लेकर भारत की अप्रोच कैसी रही।
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नेहरू और इंदिरा के समय स्पेस रिसर्च की उपलब्धियां
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय स्पेस रिसर्च की शानदार आधारशिला रखी गई । नेहरू के समय में ही इसरो का बेस तैयार हो गया था। जिसने बाद में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में आकार लिया। इंदिरा गांधी के समय में ही देश का पहला उपग्रह आर्यभट्ट और दूसरा भास्कर स्पेस में छोड़ा गया और भारत ने वैश्विक स्तर पर बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। कांग्रेस के ट्विटर हैंडल ने ट्वीट किया कि, ‘‘चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो टीम को बधाई।’ ‘यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के उस दूरदर्शी कदम को याद करने का समय है जिसके तहत 1962 में आईएनसीओएसपीएआर के जरिये अंतरिक्ष अनुसंधान का वित्तपोषण हुआ था जो कि बाद में इसरो बना।’ रणदीप सुरजेवाला ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के मशहूर ‘ट्राइस्ट विथ डेस्टिनी’ भाषण का हवाला दिया था। उन्होंने ट्वीट किया था कि भारत की ट्राइस्ट विथ डेस्टिनी चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण के साथ जारी है। ये वो निर्णायक क्षण हैं जो हमें एक महान देश बनाते हैं।’
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा, ‘‘भारत की अंतरिक्ष यात्रा पंडित नेहरू के साथ आरंभ हुई और करिश्माई नेता इंदिरा गांधी के नेतृत्व में आर्यभट्ट प्रक्षेपण के साथ 1975 में इसे गति मिली। कांग्रेस की ओर से और भी कई नेताओं पी चिदंबरम, राजीव गौड़ा आदि ने भी ऐसी ही बात कही। भाजपा की ओर से संबित पात्रा ने इसके जवाब में कहा था कि सभी भारतीय नागरिकों को गौरवान्वित करने वाली इस उपलब्धि पर राजनीति करना दुखद है।
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यूपीए सरकार में चंद्रयान और मंगलयान
22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-1 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। चंद्रयान-1 चांद की सतह से तकरीबन 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर काट रहा था। मनमोहन सिंह सरकार ने ही चंद्रयान 2 की भी तैयारी कर ली थी। लेकिन यूपीए सरकार कुछ ज्यादा ही जल्दी में थी। इसरो को मंगलयान मिशन पर काम शुरू करने के लिए कहा गया। मंगल ग्रह की जानकारी प्राप्त करने के लिए श्रीहरिकोटा से 5 नवंबर 2013 को मंगलयान-1 की लॉन्चिंग का श्रेय यूपीए सरकार को ही जाता है। मंगल ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाले भारत तीसरा देश बन गया था। केवल अमेरिका और रूस ने मंगल ग्रह पर सैटेलाइट तब तक भेजे थे। शायद यही कारण है कि कांग्रेस ने आज यह ट्वीट करके पूछा कि चंद्रयान मिशन की शुरुआत किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुई ?
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मून मिशन को लेट करने का यूपीए सरकार पर आरोप
चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग का क्रेडिट कांग्रेस खूब लेती रही है। पर मून मिशन के इतना लेट होने के पीछे यूपीए सरकार में पॉलिसी पैरालिसिस को दोष दिया जाता है। तत्कालीन इसरो चीफ जी माधवन नायर ने एक बार बातचीत के दौरान कहा था कि चंद्रयान-2 बहुत समय पहले लॉन्च हो चुका होता, लेकिन यूपीए सरकार के राजनैतिक निर्णयों के कारण ऐसा मुमकिन नहीं हो सका। दरअसल, साल 2014 में लोकसभा के पहले सरकार मंगलयान की लॉन्चिंग चाहती थी। इसलिए मून मिशन को स्थगित कर दिया गया था।
जी माधवन नायर वही शख्स हैं जिन्होंने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रमा पर लॉन्च किए गए भारत के पहले मानवरहित मिशन चंद्रयान-1 की रूपरेखा तैयार की थी। माधवन नायर ने अगस्त 2009 में घोषणा की थी कि चंद्रयान-2 को 2012 के अंत तक लॉन्च कर दिया जाएगा। नायर का आरोप था कि यूपीए सरकार 2014 के चुनाव से पहले आम जनता के बीच कोई बहुत बड़ी उपलब्धि वाला काम दिखाना चाहती थी। मंगलयान मिशन इसके लिए बिल्कुल फिट था।
दिलचस्प बात यह है कि मंगलयान का प्रक्षेपण नवंबर 2013 में हो गया था पर जब मनमोहन सरकार थी। पर अंतरिक्ष यान सितंबर 2014 में पहुंचा जब देश में मोदी सरकार बन चुकी थी। नायर का कहना था कि चंद्रयान 2 के लिए आधा काम हो चुका था पर मंगल मिशन के लिए इसे डाइवर्ट कर दिया गया।
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मोदी सरकार में हुए नीतिगत बदलाव से बहुत कुछ बदला
2014 तक साइंस एंड टेक्नोलॉजी का बजट 5 हजार 400 करोड़ रुपये था। जिसके बारे में कहा जाता था कि सारा पैसा वेतन भुगतान और प्रयोगशालाओं के रखरखाव में ही खर्च हो जाता है। 2022 में यह 14 हजार 217 करोड़ हो गया है। यानी 2014 से लेकर 2022 तक इसके बजट में तीन गुना बढोतरी में बहुत बदलाव लाया है। केवल अंतरिक्ष क्षेत्र का बजट ही पिछले 10 वर्षों में 123% की भारी वृद्धि के साथ ₹5615 करोड़ से ₹12543 करोड़ हो गया है। बजट में यह उल्लेखनीय वृद्धि स्पेस रिसर्च में भारत सरकार की प्रतिबद्धता और अग्रणी अंतरिक्ष शक्ति बनने की उसकी महत्वाकांक्षा का प्रमाण है।
सरकार ने अंतरिक्ष विभाग (DOS) के तहत एक स्वायत्त एजेंसी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना की। इस कदम के चलते महत्वपूर्ण फैसलों के क्रियान्यवयन में सुगमता हासिल हुई है। निजी उद्योग के दिग्गजों के लिए अपनी विशेषज्ञता में योगदान करने के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा मिला है। ब्यूरोक्रेसी में कमी आई है।
इस प्रोत्साहन का एक नया प्रमाण श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) में एक निजी लॉन्चपैड और मिशन नियंत्रण केंद्र की स्थापना है। अपनी स्थापना के बाद से, IN-SPACe को अंतरिक्ष क्षेत्र में विभिन्न गैर-सरकारी संस्थाओं से लगभग 135 आवेदन प्राप्त हुए हैं, और 140 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप पंजीकृत किए गए हैं। जो इनोवेशन और नई तकनीक का बेस बन रहे हैं।
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यह सही है कि आजादी के तुरंत बाद देश में स्पेस रिसर्च की बेहतर शुरुआत हुई। हम दुनिया भर में स्पेस रिसर्च में टॉप 5 या टॉप 6 देशों में शामिल रहे हैं। पर इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में पिछले 10 सालों में बहुत कुछ बदला है। 2014 से पहले, भारत प्रति वर्ष औसतन 2.15 सैटेलाइट ही प्रक्षेपित कर रहा था, पर 2014 के बाद प्रति वर्ष 5.9 अंतरिक्ष यान मिशनों के प्रभावशाली होने का उदाहरण है। यह उछाल भारत की बढ़ती क्षमताओं और वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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