बहाई धर्म : क्या है 'अय्याम-ए-हा' का महत्व, कैसे और क्यों मनाये जाते है ये दिवस?, देखे वीडियो

नई दिल्ली। उन्नीस दिनों के उपवास से ठीक पहले 25 फरवरी से 28 (लीप वर्ष में 29) फरवरी तक की अवधि को बहाई धर्म में अधिदिवस के नाम से जाना जाता है। अधिदिवस को ’अय्याम-ए-हा’ अथवा 'उल्लास के दिन’, भी कहा जाता है।
क्या हैं अय्याम -ए-हा-
यह दिन उपवास के लिए तैयारियों का समय होने के अलावा बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह ने इसे दान का समय भी कहा है। जिसके बाद आत्मनियंत्रण की अवधि आती है। बहाई कैलेंडर (बदी कैलेंडर) के अनुसार 19 दिन का एक माह होता है और 19 माह का एक वर्ष होता है। इस हिसाब से पूरे कैलेंडर 361 का एक साल होता है और बाकी बचे 4 (लीप वर्ष में 5) दिनों को अधिदिवस या ’अय्याम-ए-हा’ के रूप में मनाया जाता है। इन दिनों को 'लौंध के दिन' भी कहते है।
बहाउल्लाह कहते हैं- "बहा के लोगों के लिये उपवास के ये दिन स्वयं को, अपने सगे-सम्बन्धियों को और इनसे भी परे जाकर निर्धनों और जरूरतमंदों को खुशियाँ देने के दिन हैं, हर्ष और उल्लास के साथ अपने स्वामी के यशगान के दिन हैं, प्रभु की प्रशंसा और उनके नाम के महिमामंडन के दिन हैं।"
बहाई धर्म में बदी कैलेंडर के अनुसार उपवास के बाद 20 मार्च को यानि बसंत ऋतु की उस तिथि को जब रात और दिन बराबर होते हैं 'नवरूज़’ या नवदिवस का उत्सव मनाया जाता है। यह बहाई नववर्ष का पहला दिन है।
बहाउल्लाह ने नवरूज़ को एक सहभोज के रूप में मनाने का निर्देश दिया है। बहाई धर्मसंरक्षक शोगी एफेंदी कहते हैं, "वर्ष का यह वह समय है जब पूरी दुनिया का मौसम सबसे अधिक सुहावना होता है। इसलिये यह नये वर्ष के आरम्भ का उपयुक्त समय है जो उपवास के पावन माह (अला) के बाद आता हैं।"
बहाई कैलेंडर के अनुसार यह 19वां महीना होता है। उपवास रखने का वास्तविक उद्देश्य तो यही है कि हम विषय वासनाओं से दूर अहंकार से मुक्त रहते हुए, प्रभु का स्मरण करें। बाहरी तौर तरीकों से उभरकर उपवास रखें, अहम् से दूर रहें तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहें, द्वेष भावों से मुक्त हों, हर हाल में खुश रहें। सभी एकात्मकता की भावना से जुड़ें।
उपवास एक प्रतीक है। व्रत का अभिप्राय विषय-वासना से रहित होना है। दैहिक उपवास निवृत्ति का एक स्मृति चिन्ह मात्र है अर्थात जिस प्रकार एक मनुष्य अपने पेट की वासना को रोक सकता है उसी प्रकार उसे सभी इन्द्रियों को वासनाओं को रोकना चाहिए। परन्तु केवल भोजन न करने का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह तो प्रतीक या स्मृति मात्र है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उपवास का महत्व
व्रत करना शरीर व आत्मा के लिए बहुत गुणकारी सिद्घ होता है। साथ ही व्रत रखने के माध्यम से ही मानव आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनता है। इसके अलावा बाहरी तौर तरीकों से उभरकर उपवास रखें, अहम् से दूर रहें तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहें, द्वेष भावों से मुक्त हों, हर हाल में खुश रहें। सभी एकात्मकता की भावना से जुड़ें।