जम्मू-कश्मीर के गैर-निवासियों के मौलिक अधिकारों को Article 35A ने छीन लिया: CJI

 
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Article 35A: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारतीय संविधान के विवादास्पद प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा कि यह केवल पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देता है और यह भेदभावपूर्ण है

नई दिल्ली। संविधान के आर्टिकल 370 को निरस्त करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की कार्यवाही के 11वें दिन शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि आर्टिकल 35A (Article 35A) जो जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir) के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार और विशेषाधिकार प्रदान करता था गैर-निवासियों के मौलिक अधिकारों को छीन लिए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने सोमवार को कहा कि आर्टिकल 35A को लागू करने से समानता, देश के किसी भी हिस्से में नौकरी करने की स्वतंत्रता और अन्य मौलिक अधिकार वस्तुतः छिन गए थे।

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CJI ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारतीय संविधान के विवादास्पद प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा कि यह केवल पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देता है और यह भेदभावपूर्ण है।

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तत्कालीन राज्य के मुख्यधारा के दो राजनीतिक दलों का नाम लिए बिना केंद्र ने चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ को बताया कि नागरिकों को गुमराह किया गया है कि जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान भेदभाव नहीं बल्कि विशेषाधिकार थे।

पीटीआई के मुताबिक, तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के 11वें दिन सॉलिसिटर जनरल ने शीर्ष अदालत को बताया, "आज भी दो राजनीतिक दल इस अदालत के समक्ष आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35A का बचाव कर रहे हैं।"

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CJI चंद्रचूड़ ने मेहता की दलीलों को स्पष्ट करते हुए कहा कि आर्टिकल 35A को लागू करके आपने वस्तुतः समानता, देश के किसी भी हिस्से में पेशा करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया। यहां तक कि कानूनी चुनौतियों से छूट एवं न्यायिक समीक्षा की शक्ति भी प्रदान की।

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