'HC के जज जब लंच-डिनर करते हैं तो डिस्ट्रिक्ट जज खड़े रहते हैं', चीफ जस्टिस ने व्यवस्था पर खड़े किए सवाल

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में CJI ने कहा कि हाई कोर्ट के जजों को जिला अदालतों को सब-ऑर्डिनेट मानने की मानसिकता बदलनी चाहिए।

 
'HC के जज जब लंच-डिनर करते हैं तो डिस्ट्रिक्ट जज खड़े रहते हैं', चीफ जस्टिस ने व्यवस्था पर खड़े किए सवाल

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने देश में डिस्ट्रिक्ट जजों के प्रति बर्ताव को लेकर कटाक्ष किया है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में CJI ने कहा कि हाई कोर्ट के जजों को जिला अदालतों को सब-ऑर्डिनेट मानने की मानसिकता बदलनी चाहिए। यह हमारी औपनिवेशिक मानसिकता को बताता है। कई जगह परंपरा है कि जब हाई कोर्ट जज लंच या डिनर कर रहे होते हैं, तो डिस्ट्रिक्ट जज खड़े रहेंगे। वे हाई कोर्ट जज को भोजन परोसने की कोशिश भी करते हैं। 

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जब मैं जिला अदालतों का दौरा करता था, तो जोर देकर कहता था कि जब तक डिस्ट्रिक्ट जज साथ नहीं बैठेंगे, तब तक भोजन नहीं करूंगा। ज्यूडिशियरी में भी अब पीढ़ीगत बदलाव आ रहा है, जिसमें ज्यादा से ज्यादा युवा शामिल हो रहे हैं। पहले जब भी पुरानी पीढ़ी के ट्रायल जज उनसे बात करते थे, तो हर दूसरे वाक्य में हां जी सर जोड़ते थे। अब ज्यूडिशियरी में अधिक महिलाएं भी शामिल हो रही हैं। अगर हमें बदलना है तो सबसे पहले जिला न्यायपालिका का चेहरा बदलना होगा।

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CJI चंद्रचूड ने कहा मुझे लगता है कि सब-ऑर्डिनेट संस्कृति को हमने ही बढ़ावा दिया है। हम जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका कहते हैं। मैं कहता हूं कि डिस्ट्रिक्ट जजों को सब-ऑर्डिनेट जजों के रूप में न बुलाया जाए। क्योंकि वे सब-ऑर्डिनेट नहीं हैं। इस सोच को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि IAS अफसर ऐसा नहीं करते। कई बार जब डिस्ट्रिक्ट जजों को बैठकों के लिए बुलाया जाता है, तो वे हाई कोर्ट जजों के सामने बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। जब चीफ जस्टिस जिलों से गुजरते हैं, तो न्यायिक अधिकारी जिलों की सीमा पर कतार लगाए खड़े रहते हैं। 

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ऐसे उदाहरण हमारी औपनिवेशिक मानसिकता को बताते हैं। यह सब बदलना होगा। हमें इस सोच को बदलकर मॉडर्न ज्यूडिशियरी, इक्वल ज्यूडिशियरी की ओर बढ़ना होगा। यह डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियरी के बुनियादी ढांचे में सुधार करने से नहीं होगा। बल्कि हमें हमारी मानसिकता बदलनी होगी। हमें जिला न्यायपालिका में स्वाभिमान की भावना पैदा करनी होगी। CJI ने कहा कि दूसरी तरफ, युवा IAS अफसर अपने सीनियर की तरफ हीनभावना से नहीं देखता। दोनों के बीच बातचीत बराबरी की भावना से होती है। युवा अधिकारी समानता की भावना के साथ बोलते हैं। इससे पता चलता है कि भारत किस ओर जा रहा है। युवा शिक्षित, उज्ज्वल, आत्मविश्वासी, आकांक्षी और आत्मसम्मान की भावना रखते हैं।

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