एंटीबायोटिक दवाओं के ओवरडोज से मौत का खतरा, इन बातों का रखें ध्यान

 
antibiotic

वैश्विक स्तर पर हर साल लगभग सात लाख लोग एएमआर की वजह से जिंदगी की जंग हार जाते हैं और 2050 तक यह आंकड़ा एक करोड़ लोगों की मौत तक पहुंचने का अनुमान है।

नई दिल्ली। डॉ. प्राप्ति गिलडा: एंटीबायोटिक दवाओं का युग शुरू होने से पहले संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया की वजह से बीमारियों का व्यापक प्रकोप और महामारी (Epidemics and Pandemics) देखने को मिलती थी। बीमारियों के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की शुरुआत निस्संदेह चिकित्सा के क्षेत्र में हासिल की गई 20वीं सदी की सबसे बड़ी सफलता रही। ये चमत्कारी दवाएं लोगों को नुकसान पहुंचाए बिना शरीर में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म करने में सक्षम हैं।

अगले तीन दशक के दौरान सूक्ष्म बैक्टीरिया से निपटने के लिए चिकित्सा क्षेत्र में काफी विकास हुआ और कई खोज की गईं। इसके बाद बड़ी गिरावट आई और आखिर में खोज का नतीजा कुछ भी नहीं निकला। लेकिन खोज के बाद से ही इन एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। एंटीबायोटिक दवाओं के काफी ज्यादा इस्तेमाल और दुरुपयोग से खासतौर पर बैक्टीरिया में Antimicrobial resistance (AMR) यानी कि एंटीबायोटिक के प्रतिरोध की क्षमता काफी तेजी से बढ़ती है।

यह खबर भी पढ़ें: बेटी से मां को दिलाई फांसी, 13 साल तक खुद को अनाथ मानती रही 19 साल की बेटी, जाने क्या था मामला

एंटीबायोटिक के हैं काफी नुकसान
दरअसल, जिस तरह वायरस फैलता है और बंट जाता है। ऐसे में म्यूटेशन भी होना तय है। इनमें से ज्यादातर म्यूटेशन के दौरान वायरस में काफी ज्यादा बदलाव नहीं होता है। लेकिन एंटीबायोटिक का काफी ज्यादा इस्तेमाल करने पर ऐसे म्यूटेशन होते हैं, जो दवा का सेवन करने पर भी आसानी से पनपने लगते हैं। ऐसे में दवा का असर नहीं होता और मरीज को इंफेक्शन से छुटकारा नहीं मिलता है। जिससे न सिर्फ मृत्यु दर बढ़ती है, बल्कि ज्यादा पावर की एंटीबायोटिक के साथ-साथ अस्पताल में भर्ती रहने के दिन और इलाज के खर्च में भी इजाफा होता है। इसके अलावा ये बैक्टीरिया अस्पताल में मौजूद अन्य लोगों या कम्युनिटी में धीरे-धीरे, लेकिन प्रभावी तरीके से फैलने लगते हैं, जिन पर दवा का भी असर नहीं होता है।

वैश्विक स्तर पर हर साल लगभग सात लाख लोग एएमआर की वजह से जिंदगी की जंग हार जाते हैं और 2050 तक यह आंकड़ा एक करोड़ लोगों की मौत तक पहुंचने का अनुमान है। सिर्फ एएमआर की वजह से जान गंवाने वालों का आंकड़ा कैंसर और सड़क हादसों में जिंदगी खोने वाले कुल लोगों से ज्यादा है। ऐसे ही हालात भारत में भी हैं। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ सामान्य वायरस के 70 फीसदी से ज्यादा आइसोलेट्स आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी थे। इसका मतलब है कि अगर कोई शख्स बेहद आम यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन की चपेट में आ जाता है तो कई तरह की ओरल ड्रग्स असरदार साबित नहीं होंगी।

यह खबर भी पढ़ें: शादी किए बगैर ही बन गया 48 बच्चों का बाप, अब कोई लड़की नहीं मिल रही

गलत एंटीबायोटिक्स का चयन ना करें
अफसोस की बात यह है कि काफी लोग किसी न किसी तरह इन हालात को बढ़ाना देने के लिए जिम्मेदार हैं। वायरल इंफेक्शन होने पर लगभग सभी ने एंटीबायोटिक दवाएं ली हैं। उन्होंने कभी इस बात की भी परवाह नहीं की कि एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया पर असर करती हैं, वायरस पर नहीं। भारत में केमिस्ट की ‘खास’ सलाह पर दवाएं खरीदना आम बात है। गलत एंटीबायोटिक्स का चयन, गलत खुराक और मरीज के ठीक होने के बाद भी इलाज हमारे देश में सुपरबग्स में इजाफा होने के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार हैं।

यह खबर भी पढ़ें: शादी से ठीक पहले दूल्हे के साथ ही भाग गई दुल्हन, मां अब मांग रही अपनी बेटी से मुआवजा

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन मामलों में डॉक्टर भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। वे बिना कल्चर रिपोर्ट देखे एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। मरीज की स्थिति समझे बिना एंटीबायोटिक दवाओं की डोज बढ़ा देते हैं और हल्का संक्रमण होने पर भी एंटीबायोटिक दवाएं दे देते हैं।

एएमआर में जिस तरह से बढ़ोतरी हो रही है, ऐसे में पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए काफी कम विकल्प बच जाते हैं। क्योंकि नई एंटीबायोटिक दवाओं के आने की उम्मीद बेहद कम है। दवा बनाने वाली कंपनियों के लिए गंभीर बीमारियों के लिए दवाओं का उत्पादन करना ज्यादा आसान होता है, क्योंकि नई दवाओं पर रिसर्च कर उनके उत्पादन में उन्हें ज्यादा फायदा नहीं होता।

ऐसे एंटीबायोटिक की खोज से पहले बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण और मौत जैसे हालात से बचने, और अपने और अपने प्रियजनों की भलाई के लिए ऐसे मामलों को लेकर सजग रहने की जरूरत है।

यह खबर भी पढ़ें: ऐसा गांव जहां बिना कपड़ों के रहते हैं लोग, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह

रोगाणुरोधी प्रतिरोध से बचाने के लिए कोई शख्स क्या कर सकता है? यहां समझें:

  1. सबसे पहले यह पता करें कि क्या वास्तव में एंटीबायोटिक की जरूरत है। दरअसल, बुखार और नियमित खांसी-जुकाम के 90 फीसदी मामले वायरल की वजह से होते हैं, जो खुद-ब-खुद ठीक हो जाते हैं।
  2. यह सुनिश्चित करें कि एंटीबायोटिक की डोज सही है या नहीं। इसके अलावा डॉक्टर द्वारा बताए गए कोर्स को पूरा करें।
  3. अगर मुमकिन हो तो कल्चर और दवा के सेंसिटिविटी टेस्ट पर जोर दें।
  4. यह चेक करें कि क्या आपके अस्पताल और स्वास्थ्य देखभाल सेटअप में रोगाणुरोधी प्रबंधन कार्यक्रम की व्यवस्था है।
  5. हाथों की साफ-सफाई का ध्यान रखें।

(लेखक यूनिसन मेडिकेयर एंड रिसर्च सेंटर में क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं।)

Download app : अपने शहर की तरो ताज़ा खबरें पढ़ने के लिए डाउनलोड करें संजीवनी टुडे ऐप

"जयपुर में निवेश का अच्छा मौका, जमीन में निवेश के लिए"

 

JDA अप्रूव्ड प्लॉट्स JAIPUR, मात्र 4 लाख में वाटिका, टोंक रोड, कॉल 8279269659

 

From around the web