BJP के कैंडिडेट अंधेरी से हटाने से उद्धव को ही घाटा, शिंदे का कुछ नहीं जाता; जानें 5 कारण

रविवार को एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने भाजपा नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर उनसे लटके के खिलाफ भाजपा उम्मीदवार को वापस लेने का अनुरोध किया था।
नई दिल्ली। मुंबई में अंधेरी (पूर्व) विधानसभा सीट का उपचुनाव एक हाई-वोल्टेज मुकाबला माना जा रहा था, लेकिन अब केवल औपचारिकता ही रह गई है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बालासाहेबंची शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपना उम्मीदवार वापस ले लिया है। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की उम्मीदवार रुतुजा लटके के लिए अब यह एक केक वॉक है।
रविवार को एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने भाजपा नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर उनसे लटके के खिलाफ भाजपा उम्मीदवार को वापस लेने का अनुरोध किया था। शिवसेना विधायक रमेश लटके के आकस्मिक निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी ऐसा ही अनुरोध किया था। सोमवार को कई बैठकों के बाद भाजपा ने आखिरकार घोषणा की कि वह चुनाव से हट रही है।
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महाराष्ट्र में राजनीतिक ड्रामे के बाद यह उपचुनाव उद्धव ठाकरे और भाजपा-शिंदे गुट के बीच पहला बड़ा आमना-सामना होने वाला था। यह उपचुनाव चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना नाम और धनुष-बाण चिन्ह को सील करने और दोनों गुटों को दो अलग-अलग नाम और चुनाव चिह्न आवंटित करने के तुरंत बाद भी हो रहा था।
भाजपा और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) दोनों ने ही काफी धूमधाम और शक्ति प्रदर्शन के बीच अपने-अपने उम्मीदवारों के नामांकन दाखिल करवाए। भाजपा के द्वारा कैंडिडेट का नाम वापस लेने उद्धव ठाकरे के लिए एक राहत की तरह लग सकती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।
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जानें क्या हैं इसके पांच कारण
1. यह उपचुनाव उद्धव ठाकरे और उनके खेमे के लिए मुंबई में अपनी वास्तविक शक्ति का परीक्षण करने का एक अवसर था। रुतुजा लटके की जीत का मतलब यह होता कि भले ही नेता, विधायक और सांसद एकनाथ शिंदे के साथ गए हों, लेकिन जनता और मतदाता मजबूती से ठाकरे के साथ हैं। यह मौका अब उद्धव ठाकरे से छिन गया है।
2. इसने उद्धव ठाकरे से आगामी बीएमसी चुनावों के लिए टोन सेट करने का अवसर छीन लिया है। भाजपा-शिंदे गठबंधन के साथ सीधा टकराव उद्धव के पास मतदाताओं तक पहुंचने और अपने नए चुनाव चिन्ह (जलता मशाल) और नए नाम शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) को लोकप्रिय बनाने का मौका था।
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3. राज ठाकरे की एमएनएस ने पिछले चुनावों में अंधेरी (पूर्व) विधानसभा क्षेत्र में अच्छे वोट हासिल किए थे। मनसे ने यहां मराठी मतदाताओं पर पूरा फोकस किया था। भाजपा के द्वारा एक गैर-मराठी उम्मीदवार को मैदान में उतारने का मतलब यह होता कि मनसे के वोट या तो शिवसेना (यूबीटी) में चले जाते या फिर भाजपा से दूर रहते। यह उद्धव ठाकरे के लिए एक फायदा साबित हो सकता था, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं बनेगी।
4. अगर बीजेपी-बालासाहेबंची शिवसेना गठबंधन और शिवसेना (यूबीटी) के बीच सीधा मुकाबला होता और उद्धव ठाकरे के गुट यह उपचुनाव जीत जाता तो मुंबई में इसका बड़ा असर होता। बीएमसी के कई पूर्व पार्षदों ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि उन्हें उद्धव के साथ रहना है या बीएमसी चुनाव से पहले शिंदे गुट में शामिल होना है।
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5. एक गुजराती और एक मराठी उम्मीदवार के बीच सीधी लड़ाई के साथ इस चुनाव में उद्धव गुट के लिए 'मराठी मानुष की पार्टी' की कहावत को बल मिलता। बीएमसी चुनाव से पहले मराठी वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता था, जो अब होता नहीं दिख रहा है।
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