बीमारी से बचाव ही सबसे बड़ा इलाज: डॉ. त्रेहन

-    वंशानुगत बीमारी हो तो अतिरिक्त सर्तकता जरूरी 
-    कोरोना से फेफड़े ही नहीं नसों को भी भारी नुकसान
-    मधुमेह की सबसे बड़ी दवा योग
-    राजेश कालानी फाउण्डेशन व श्री माहेश्वरी समाज की परिचर्चा हार्ट टू हार्ट जयपुर में सम्पन्न
 
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जयपुर। जीवन में बीमार होना सबसे बुरा है, लेकिन यदि बीमारी आने के संकेत समय रहते मिल जाएं और उसकी पहचान कर बीमार होने से ही बचा जा सके तो इससे अच्छी बात कोई और हो नहीं सकती। ह्रदय रोग, मधुमेह और कैंसर होने की भी संभावनाओं की भी जानकारी मिल सकती है। यदि आपके अभिभावकों में से कोई एक इसका मरीज रहा है तो आपको 25 फीसदी और यदि दोनों इसके मरीज रहे हैं तो 50 फीसदी तक इन रोगों से ग्रसित होने की संभावना है। इसलिए जरूरी है कि बीमार होने से पूर्व ही समय रहते कुछ नियमित जांच कराते रहे। 

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यह बात गुड़गांव के मेदांता होस्पिटल के प्रबंध निदेशक, विश्व प्रसिद्ध ह्रदय रोग विशेषज्ञ, पदमश्री व पदमभूषण से सम्मानित डॉ. नरेश त्रेहन ने गुरुवार को माहेश्वरी स्कूल के तक्षशिला सभागार में हार्ट-टू-हार्ट विषयक संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए कही। संगोष्ठी का आयोजन राजेश कालानी फाउण्डेशन व श्री माहेश्वरी समाज्, जयपुर के संयुक्त तत्वाधान की ओर से किया गया। 

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उन्होंने कहा कि भारत में बीमार होने के बावजूद देरी से आने की मरीज की परम्परा रही है, लेकिन इसे ठीक करने की जरूरत है। चिकित्सा क्षेत्र में वर्तमान में बीमारी से बचाव पर ही पूरी तरह फोकस किया जा रहा है। उन्होंने भारत में बढ़ती मधुमेह के रोगियों की संख्या का कारण खान-पान व जीवन में असंतुलन बताया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि यह जरूरी नहीं कि डायबीटिज और हाई ब्लड प्रेशर की दवाएं आपको पूरे जीवन भर खानी पड़ेगी। यदि डॉक्टर की सलाह के अनुसार स्वास्थ्य पर ध्यान देंगे तो यह दवांए भी बंद हो सकती है।

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कोरोना के दुष्प्रभावों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कोरोना ने विश्व भर में जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। अब तक भी कोरोना वायरस के प्रभाव का वैज्ञानिकों को पूरी तरह पता नहीं लग सका है। शोध जारी है, लेकिन यह तय हो गया है कि कोरोना वायरस के कारण केवल फैफड़े ही नहीं नसें और ह्रदय पर भी गंभीर असर पड़ा है। यहीं कारण है कि कोरोना ग्रसित मरीज ठीक होने के बाद भी कसरत करते हुए अथवा सामान्य गतिविधियों में भी मृत्यु तक को प्राप्त हो रहे हैं। 

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उन्होंने कहा कि वैक्सीन लेने के कारण ह्रदय रोगियों की संख्या में वृद्धि होना केवल भ्रामक बात है। वैक्सीन लेने वाले तो कोरोना से बचे हैं। भारतीय वैक्सीन अधिक असर कारक भी है। बूस्टर डोज लग रही है, लेकिन कितनी लगेगी, अभी नहीं कहा जा सकता। अब हाल ही आई नोजल वैक्सीन के परीक्षण हो रहे हैं, संभव है इसके बाद कोई और बूस्टर डोज की जरूरत नहीं हो।

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उन्होंने उम्र बढ़ने के साथ जीवन में आने वाले बदलवा की चर्चा करते हुए कहा कि 50 वर्ष की आयु के बाद मांसपेशियों में कमजोरी आना सामान्य बात है। इसलिए योग करें, और सूर्य नमस्कार नियमित करने का प्रयास करें। उन्होंने अपनी सेहत का राज बताते हुए कहा कि वे स्वयं 25 वर्ष से नियमित योग कर रहे हैं। 60 वर्ष से अधिक की आयु के बाद भूलने की बीमारी आती है, अत: दिमागी कसरत जैसे क्रॉस वर्ल्ड, सुडुको, शतरंज आदि खेल खेंले। उन्होंने उदाहरण दिया कि वकीलों को भूलने की बीमारी नहीं होती, क्योंकि उनका दिमाग हमेशा चलता रहता है। 70 वर्ष की आयु तक हड्डियां कमजोर हो जाती है और जल्द टूटने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए सप्लिमेंट का उपयोग करें। 

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इससे पूर्व श्री माहेश्वरी समाज जयपुर के अध्यक्ष केदार मल भाला ,महामंत्री मनोज मूदड़ा तथा महासचिव (शिक्षा) मधुसुदन बियानी ने डॉ. नरेश त्रेहन का गुलदस्ता भेंट कर व शॉल पहना कर स्वागत किया। राजेश कालानी फाउण्डेशन के मुख्य ट्रस्टी सुरेश कालानी ने राजस्थानी परम्परा का निर्वहन करते हुए साफा पहनाया और जयपुर में इस संगोष्ठी के लिए समय निकालने का आभार जताया। 

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संगोष्ठी में फाउंडेशन के ट्रस्टी पुनीत व तरुण कालानी ने प्रश्नोत्तरी सत्र का संचालन किया और  डॉ. नरेश त्रेहन ने भी उपस्थित श्रोताओं के प्रश्नों का भी बैबाकी से जवाब दिए और उनकी भ्रांतियों को दूर किया। कार्यक्रम के अंत में शांतिलाल जागेटिया व महेश साबू ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल, पूर्व विधायक मोहनलाल गुप्ता, संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू सहित बड़ी संख्या में माहेश्वरी समाज बंधुओ, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

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