Morbi Bridge Collapse: मोरबी हादसे पर HC ने नगर पालिका को लगाई फटकार, सरकार से कहा- मत दिखाओ होशियारी

गांधीनगर। गुजरात के मोरबी ब्रिज हादसे में 30 अक्टूबर को हुई 137 मौतों पर गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी नगर पालिका को जमकर फटकार लगाई है। जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा, "नोटिस जारी होने के बावजूद, मोरबी नगर पालिका की तरफ से कोई भी कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ। वे ज्यादा होशियार बन रहे हैं। पहले जवाब देने कल हाजिर हों।" मोरबी हादसे पर सुनवाई की अगली तारीख 24 नवंबर है, लेकिन मोरबी नगर पालिका को कल यानी 16 नवंबर कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया गया है।
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सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस अरविंद कुमार ने पूछा कि मोरबी सिविल बॉडी और प्राइवेट कॉन्ट्रेक्टर के बीच हुआ कॉन्ट्रैक्ट महज 1.5 पन्ने का है। पुल के रेनोवेशन के लिए कोई टेंडर नहीं दिया गया था। फिर बिना टेंडर ठेका क्यों दिया गया? कोर्ट ने स्टेट गर्वनमेंट से कॉन्ट्रैक्ट की पहले दिन से लेकर आज तक की सभी फाइलें सीलबंद लिफाफे में जमा करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी पूछा है कि गुजरात नगर पालिका ने मोरबी नगर समिति के CEO एसवी जाला के खिलाफ क्या कार्रवाई की है।
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AG कमल त्रिवेदी ने बेंच को दिए हलफनामे में कहा कि दिवाली के कारण पुल पर लोगों की भारी भीड़ थी। रोजाना 3,165 से ज्यादा लोग पुल पर आ रहे थे, जबकि एक समय में 300 लोग पुल पर मौजूद थे। मोरबी पुलिस, जो लगभग 1.5 किमी दूर थी, पांच मिनट के भीतर साइट पर पहुंच गई और 22 कॉन्स्टेबल लोगों को बचाने के लिए नदी में कूद गए थे। AG ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने मरने वालों के परिजन और घायलों को मुआवजा देने का फैसला किया है। केंद्र सरकार भी मरने वालों को 2 लाख रुपए और घायलों को 50 हजार रुपए का भुगतान करेगी।
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साथ ही कोर्ट ने कई सवाल पूछे जैसे, बिना टेंडर बुलाए रेनोवेशन का ठेका कैसे दे दिया, पुल की फिटनेस को सर्टिफाइड करने की जिम्मेदारी किसके पास थी, 2017 में कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने और अगले टेन्योर के लिए टेंडर जारी करने के लिए क्या कदम उठाए, 2008 के बाद MOU रिन्यू नहीं हुआ तो किस आधार पर पुल को अजंता द्वारा संचालित करने की अनुमति दी जा रही थी, क्या हादसे के लिए जिम्मेदारों पर गुजरात नगरपालिका अधिनियम की धारा 65 का पालन हुआ था, गुजरात नगर पालिका ने अधिनियम की धारा 263 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग क्यों नहीं किया, जबकि प्राइमाफेसी गलती नगर पालिका की थी। तो वहीं पिछली सुनवाई में कोर्ट ने गुजरात सरकार को एक रिपोर्ट फाइल करने को कहा था, जिसमें सरकार को यह बताना था कि उन्होंने हादसे के बाद से अब तक क्या कदम उठाए हैं। वहीं राज्य मानवाधिकार आयोग से भी रिपोर्ट मांगी थी। बेंच ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि क्या वह उन लोगों को अनुकंपा नौकरी दे सकती है जिनके परिवार का इकलौता कमाने वाला हादसे में मारा गया।
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