पहली बार दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में महिला अधिकारी तैनात, जाने इनके बारे में

 
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Capt। Shiva Chauhan: पहली बार दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन पर किसी महिला अधिकारी को तैनात किया गया है। ये हैं कैप्टन शिवा चौहान। इसकी जानकारी भारतीय सेना के फायर एंड फुरी कॉर्प्स ने ट्वीट करके दी।

 

नई दिल्ली। Capt। Shiva Chauhan: भारतीय सेना के फायर एंड फुरी कॉर्प्स (Fire and Fury Corps) की महिला अधिकारी कैप्टन शिवा चौहान को दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में तैनात किया गया है। कैप्टन शिवा 15,632 फीट की ऊंचाई पर मौजूद कुमार पोस्ट (Kumar Post) पर ड्यूटी कर रही हैं। भारतीय सेना ने पहली बार किसी महिला अधिकारी को इस खतरनाक पोस्ट पर तैनात किया है। 

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फायर एंड फुरी कॉर्प्स ने ट्वीट करके कहा कि कैप्टन शिवा चौहान फायर एंड फुरी सैपर्स हैं। वह कुमार पोस्ट पर तैनात होने वाली पहली भारतीय महिला हैं। यह दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। कैप्टन शिवा ने इस जगह की तैनाती से पहले काफी कठिन ट्रेनिंग पूरी की है। फायर एंड फुरी कॉर्प्स का मुख्यालय लेह में है। यह सेना के उत्तरी कमांड के तहत आता है। इनकी तैनाती चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर होती है। साथ ही ये सियाचिन ग्लेशियर की रक्षा करते हैं। 

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अपने जवानों के साथ कैप्टन शिवा चौहान (सफेद यूनिफॉर्म में बीच में). फोटोः ट्विटर/फायर एंड फुरी कॉर्प्स

फायर एंड फुरी कॉर्प्स को आधिकारिक तौर पर 14वां कॉर्प्स कहा जाता है। फिलहाल सियाचिन में दिन का तापमान माइनस 21 डिग्री सेल्सियस है। जबकि रात में पारा माइनस 32 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच रहा है। ऐसे में हमारे वीर जवान मौसम से जंग लड़ते हुए सीमा की सुरक्षा में लगे हैं।  

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सियाचिन को 1984 में मिलिट्री बेस बनाया गया था। तब से लेकर 2015 तक 873 सैनिक सिर्फ खराब मौसम के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। सियाचिन ग्लेशियर पर 3 हजार सैनिक हमेशा तैनात रहते हैं। इन तीन हजार जवानों की सुरक्षा भी बेहद जरूरी है। भारत सरकार सियाचिन पर मौजूद जवानों हर दिन करीब 5 करोड़ रुपये खर्च करती है। इसमें सैनिकों की वर्दी, जूते और स्लीपिंग बैग्स भी शामिल होते हैं। 


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सियाचिन ग्लेशियर पर ज्यादातर समय शून्य से कई डिग्री नीचे तापमान रहता है। एक अनुमान के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के कुल मिलाकर 2500 जवानों को यहां अपनी जान गंवानी पड़ी है। 2012 में पाकिस्तान के गयारी बेस कैंप में हिमस्खलन के कारण 124 सैनिक और 11 नागरिकों की मौत हो गई थी। 

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