दिल्ली HC हुई 33 हफ्ते की प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन के लिए राजी, कहा- मां का फैसला ही आखिरी

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला को 33 हफ्ते की प्रेग्नेंसी खत्म करने की इजाज़त दे दी है। कोर्ट 26 साल की पूजा नाम की महिला के मामले में सुनवाई कर रहा था। पूजा की ओर से एडवोकेट अन्वेश मधुकर, प्रांजल शेखर, प्राची निर्वान और यासीन सिद्दीकी ने पक्ष रखा। सोमवार को सुनवाई के दौरान न्यूरोसर्जन और स्त्री रोग विशेषज्ञ का पक्ष सुना था और फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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दरअसल, कुछ दिक्कतों के चलते बच्चा विकलांग पैदा हो सकता था। प्रेग्नेंसी एडवांस स्टेज में थी, इसलिए दिल्ली के LNJP हॉस्पिटल के मेडिकल बोर्ड ने अबॉर्शन से इनकार कर दिया था। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में अपील की थी। तो वहीं, न्यूरोसर्जन ने कोर्ट से कहा था, "इस बात की पूरी संभावना है कि बच्चा कुछ विकलांग होगा, लेकिन बच जाएगा। बच्चे के जीवन की गुणवत्ता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन, जन्म के लगभग 10 हफ्ते बाद कुछ परेशानियों से निपटने के लिए सर्जरी की जा सकती है।"
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जज ने क्या कहा -
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने फैसला सुनाते हुए कहा, कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा है कि मां की पसंद ही आखिरी है। इसे ध्यान में रखते हुए कोर्ट गर्भपात की परमिशन देता है। वो चाहे तो LNJP या अपने चुने हुए किसी भी हॉस्पिटल से अबॉर्शन करवा सकती है। कोर्ट ने एलएनजेपी अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट पर भी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट का कहना था कि ये रिपोर्ट अधुरी है।
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जस्टिस सिंह ने बताया कि याचिकाकर्ता से बातचीत के दौरान पता चला कि वह यह जानती थी कि अगर वह विकलांग बच्चे को जन्म देती तो उसे मानसिक आघात से गुजरना पड़ता। उन्होंने आगे कहा, भारतीय कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि अंततः एक मां की चॉइस पर निर्भर होता है कि वह अपनी गर्भावस्था को जारी रखना चाहती है या नहीं। कोर्ट ने कहा, इस तरह के मामलों में एक महिला गंभीर दुविधा से गुजरना पड़ता है। आधुनिक तकनीक के साथ अबॉर्शन जैसे मामलों में फैसला करना मुश्किल हो जाता है।
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