अजय देवगन की फिल्म 'भोला' में एक्शन का 'ओवरडोज', लेकिन पैसा वसूल है मूवी

Bhola Film Review: सोशल मीडिया पर इन दिनों यूथ के बीच शिव के प्रति प्रेम ऊफान पर है। इसी मौके को इनकैश करते हुए अजय देवगन अपने फैंस के लिए 'भोला' का तोहफा लेकर आए हैं। शिव का प्रतिकात्मक बने अजय यह फिल्म शिव भक्तों को डेडिकेट करते हैं।
नई दिल्ली। अजय देवगन के भगवान शिव प्यार से तो हम सभी वाकिफ हैं। फिल्मों के जरिए उन्होंने कई बार अपने शिव भक्त होने की बात को गहरे तरीके से स्टैबलिश किया है। फिल्म 'शिवाय' के बाद 'भोला' भी इसी श्रृंखला का हिस्सा है। साउथ फिल्म 'कैथी' की ऑफिशियल रीमेक यह फिल्म दर्शकों के लिए कितनी एंटरटेनिंग साबित होती है। जानने के लिए पढ़ें ये रिव्यू...
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कहानी
भोला (अजय देवगन) को दस साल बाद जेल से रिहाई मिली है। जेल में रहते भोला को यह पता चलता है कि उसकी एक बेटी है, जो लखनऊ के एक अनाथालय में रहती है। जेल से निकलते ही भोला उससे मिलने को आतुर है। वहीं दूसरी ओर एसपी डायना जोसफ (तब्बू) ने एक बड़े गिरोह माफिया के ड्रग तरस्करी का माल पकड़ा है और बरामद माल को वो पुलिस थाने के एक खुफिया एरिया में छिपा देती है। माल को दोबारा वापस लाने और डायना को जान से मारने की साजिश रचने वाले अस्वाथामा (दीपक डोबरियाल) को एक पुलिस इंस्पेक्टर (गजराज राव) की ओर टिप मिलती है। इसकी तैयारी में अस्वाथामा पार्टी कर रही पुलिस फोर्स के ड्रिंक्स में कुछ ऐसा मिला देता है, जिससे एक-एक कर सभी पुलिस इंस्पेक्टर बेहोश हो जाते हैं और उनकी जान को खतरा है। इसी बीच एसपी डायना इन सभी पुलिस अफसर को अस्पताल पहुंचाने की जिम्मेदारी लेती है, साथ ही उसे थाने भी पहुंचना है ताकि बरामद माल पर किसी की सेंध न लगे। इस सफर में भोला उनके साथ कैसे जुड़ता है? पकड़े गए माल का क्या होता है? और क्या वो पुलिस ऑफिसर्स को बचा पाता है? अस्वाथामा अपना बदला कैसे लेता है? इन सारे सवालों के जवाब के लिए नजदीक के थिएटर की ओर रुख करें।
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डायरेक्शन
फिल्म में एक्टिंग के साथ-साथ डायरेक्शन की जिम्मेदारी भी अजय देवगन ने संभाली है। ऐसे वक्त में जहां लोगों का वर्ल्ड सिनेमा के प्रति एक्सपोजर बढ़ा है, वहां साउथ की मशहूर फिल्म कैथी की रीमेक कर लोगों के बीच उसे रेलिवेंट बनाए रखना अजय के लिए बेशक चुनौतीभरा रहा होगा। फिल्म में एंटरटेनमेंट का हर वो डोज है, जिसकी ख्वाहिश एक सिनेमा लवर को होती है। हालांकि कौन सा डोज किस मात्रा में देना है, इसके बैलेंस में अजय की चूक नजर आती है। नतीजतन फिल्म इमोशनल से हटकर एक एक्शन ड्रामा तक सीमित होकर रह जाती है। फिल्म में एक्शन सीक्वेंस की अतिरिक्ता है। वहीं कैथी फिल्म की खासियत यह थी कि वो इमोशनली अपने दर्शकों को कनेक्ट करके रखती है। एक अकेले भोला का सौ से भी ज्यादा गुंडों से भिड़ना थोड़ा लॉजिक से परे लगता है। लेकिन तर्क यह भी है कि अगर यही काम साउथ की फिल्मों में हो, तो सीटियां और तालियां बजने लगती है, वहीं हम बॉलीवुड फिल्मों को लेकर थोड़े ज्यादा क्रिटिक हो जाते हैं।
फर्स्ट हाफ से लेकर क्लाइमैक्स तक बस आपको गाड़ी, ट्रक, बाइक उड़ते नजर आते हैं। फर्स्ट हाफ में एक-दो जगह कुछ इमोशनल सीन्स को छोड़ पूरा वक्त ट्रक के सीक्वेंस पर गुजरा है। वहीं सेकेंड हाफ में भोला की बैकड्रॉप स्टोरी को एक गाने में समेटने की स्मार्ट कोशिश रही है। एक रात की कहानी को जिस लेंथ में समेटना था, उसका पूरा ध्यान रखा गया है। पूरी फिल्म में जो एक बात खलती है, वो है भोला के किरदार का प्रॉपर तरीके से स्टैबलिश न हो पाना। हालांकि उसके पीछे तर्क यह भी हो सकता है कि फिल्म के अगले भाग में इस बात को कन्वे किया जाए। आखिर में फिल्म टू बी कन्टीन्यू मैसेज के साथ अपने पड़ाव पर तो आती है। लेकिन कंफ्यूजन ये बरकरार होता है कि अगले भाग प्रीक्वल होगा या सीक्वल? हालांकि जिस इंट्रेस्टिंग तरीके से एक स्टार की एंट्री के साथ फिल्म को खत्म किया है, वो आपको पार्ट 2 के लिए रोमांचित जरूर करेगा। स्टार का नाम लेकर उसे स्पॉइल करना सही नहीं होगा।
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टेक्निकल एंड म्यूजिक
एक रात की कहानी को कैमरे में दिखाने का काम फिल्म के सिनेमैटोग्राफर असीम बजाज का उम्दा किया है। हालांकि स्क्रीन पर फिल्म थोड़ी डार्क टोन में ज्यादा है लेकिन खूबसूरत लगती है। कई क्लोजअप शॉट्स और एक्शन सीक्वेंस को स्क्रीन पर देखना ट्रीट जैसा है। खासकर गंगा आरती के वक्त पूरे बनारस को ड्रोन शॉट में दिखाना और ट्रक में एक्शन सीक्वेंस को फ्रेम दर फ्रेम सवांरने में एफर्ट साफ नजर आता है। बजाज के काम में पूरी इमानदारी दिखती है।
3डी में फिल्म को देखना एक बेहतरीन एक्सपीरियंस हो सकता है। इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसका बैकग्राउंड म्यूजिक है। रवि बसरुर का बैकग्राउंड म्यूजिक कुछ जगहों पर इतना लाउड है कि डायलॉग की क्लैरिटी नहीं मिल पाती है। बता दें, क्रिटिक्स को दूसरी बार फिल्म दिखाई गई है। दरअसल पहली प्रिंट के दौरान फिल्म में कई तरह के टेक्निकल ग्लिच थे। डायलॉग्स की क्लैरिटी बिलकुल भी नहीं थी, वहीं रातों-रातों इसके साउंड पर काम कर नया प्रिंट तैयार किया गया है। हालांकि बदलाव के बाद बेशक डायलॉग में क्लैरिटी आई है लेकिन बैकग्राउंड स्कोर फिर भी इरिटेट करता है। इसका बड़ा नुकसान फिल्म झेलने वाली है। म्यूजिक के पक्ष पर भी कुछ कमाल नजर नहीं आता है। बी प्राक का गाया एक इमोशनल सॉन्ग भी है, जो बहुत ज्यादा छाप नहीं छोड़ पाता है।
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एक्टिंग
एक्टर्स की कास्टिंग और उनका अनकन्वेंशनल लुक इस फिल्म का मजबूत पक्ष है। कहते हैं न, कास्टिंग बेहतरीन हो, तो डायरेक्टर आधी जंग पहले ही जीत जाता है। तब्बू, संजय मिश्रा, दीपक डोबरियाल, विनित कुमार, राज किरण जैसे जहीन एक्टर्स से सुसज्जित फिल्म अपने किरदारों से छाप छोड़ी है। सब एक दूसरे पर नहले पर दहला साबित हुए हैं। अजय देवगन भी अपने किरदार के साथ जंचे हैं लेकिन वो एक्शन में इतने ज्यादा खो गए थे कि उनके इमोशनल पार्ट को स्क्रीन पर मिस करेंगे। कुछ जगहों को छोड़ दें, तो अजय अपने एंग्री मैन अवतार में नजर आते हैं। एक अघाती पिता का पोट्रेअल स्क्रीन पर सही तरीके से कन्वे करने में असफल रहे हैं।
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क्यों देखें
अजय देवगन के फैंस के लिए भोला एक ट्रीट है। खासकर एक्शन लवर्स को यह फिल्म बहुत पसंद आएगी। मास ऑडियंस को ध्यान में रखकर बनाई गई इस फिल्म को एक मौका दिया जा सकता है।
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