Jaipur News: जिस जयपुर की चारदीवारी को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का विशिष्ट दर्जा दिया था, वही ऐतिहासिक परकोटा अब अवैध पोस्टर और बैनरों की होड़ में अपनी पहचान खो रहा है. कभी गुलाबी रंग से सजी परकोटे की दीवारें अब राजनेताओं के चेहरों और पार्टी के झंडों से पूरी तरह ढकी पड़ी हैं, जिससे शहर की खूबसूरती पर एक गहरा दाग लग गया है.
विरासत पर ‘राजनीतिक दाग’
यूनेस्को ने यह दर्जा इसलिए दिया था ताकि दुनिया इस धरोहर को उसके असली स्वरूप में देख सके, लेकिन हकीकत उलट है. स्मार्ट सिटी की करोड़ों की योजनाओं के बावजूद, हेरिटेज निगम की मेयर से लेकर विधायकों तक के बधाई पोस्टर-बैनर चारदीवारी की हर गली और हर दीवार पर चिपके हैं. स्मार्ट सिटी मिशन के तहत जिस फसाड़ (Façade) को एकरूपता दी गई थी, वहीं उसी पर राजनीतिक रंग चढ़ाकर परकोटे को बदरंग किया जा रहा है. वर्ल्ड हेरिटेज गाइडलाइन में जिस नो-कंस्ट्रक्शन जोन और स्पेशल एरिया प्लान की बात है, उसी क्षेत्र में नेताओं के होर्डिंग और बैनर हर दिशा में झूल रहे हैं.
निगम की चुप्पी और पर्यटकों की निराशा
हैरानी की बात यह है कि नगर निगम की एनफोर्समेंट टीम भी इन अवैध पोस्टरों को हटाने में नाकाम साबित हो रही है, क्योंकि इनमें से अधिकांश बैनर्स और पोस्टर्स सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों के हैं. पर्यटन सीजन में चारदीवारी में चलना इन दिनों जाम और अव्यवस्था से गुजरने जैसा हो गया है. पर्यटक, जो जयपुर की खूबसूरती देखने आए हैं, उन्हें हर जगह दीवारों पर चिपके नेताओं के चेहरे और पोस्टर देखकर निराशा हो रही है. ट्रैफिक जाम, अव्यवस्थित पार्किंग और पोस्टरों की भीड़ ने जयपुर की छवि को धूमिल कर दिया है.
जिम्मेदारी किसकी?
वर्ल्ड हेरिटेज गाइडलाइन कहती है कि चारदीवारी के भीतर लगी हर बाहरी यूनिट—चाहे वह एसी हो, डिश एंटीना या बैनर—उसे हटाना अनिवार्य है. लेकिन जयपुर में हर गली पोस्टरों से भरी है. परकोटे को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ नगर निगम या स्मार्ट सिटी लिमिटेड की नहीं, बल्कि उन विधायकों और जनप्रतिनिधियों की भी है, जो खुद को ‘शहर का सेवक’ कहते हैं. अगर वे पहल कर अपने कार्यकर्ताओं से पोस्टर की जगह पौधे लगाने को कहें, तो शायद जयपुर की विरासत फिर से अपनी असली पहचान पा सके.






