राजस्थान के सवाई मान सिंह (एसएमएस) अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में रविवार रात शॉर्ट सर्किट से लगी आग ने न केवल आठ मरीजों की जान ले ली, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही को भी बेनकाब कर दिया. न्यूज 18 इंडिया के पास वो पत्र उपलब्ध है, जिसमें ट्रॉमा सेंटर इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ ने एक महीने में तीन बार उच्च अधिकारियों को हादसे की आशंका जताते हुए पत्र लिखे थे, लेकिन न तो निर्माण कार्य रोका गया और न ही विद्युत व्यवस्था दुरुस्त की गई. इस बीच, राजस्थान हाईकोर्ट ने सोमवार को सरकारी भवनों की सुरक्षा पर तीखी टिप्पणी की, जबकि सरकार ने मुआवजा और जांच के वादे किए.
ट्रॉमा सेंटर के न्यूरोसर्जरी आईसीयू में रविवार रात करीब 11:20 बजे शॉर्ट सर्किट के कारण आग लग गई. आग तेजी से फैली और जहरीली गैसें छोड़ने लगीं, जिससे 11 मरीजों वाले आईसीयू में अफरा-तफरी मच गई. मरीजों के परिजनों ने आरोप लगाया कि डॉक्टर और कंपाउंडर धुएं फैलते ही भाग खड़े हुए, जिससे तीमारदारों को खुद मरीजों को बचाना पड़ा. फायर ब्रिगेड की सात गाड़ियां पहुंचीं, लेकिन आग पर काबू पाने में 1:30 घंटे लग गए. इस हादसे में आठ लोगों की मौत हो गई जबकि पांच अन्य मरीजों की हालत गंभीर बनी हुई है.
सिस्टम की लापरवाही से हुआ बड़ा हादसा
पुलिस कमिश्नर बिजू जॉर्ज जोसेफ ने बताया कि प्रथम दृष्टया शॉर्ट सर्किट कारण है, लेकिन एफएसएल जांच पूरी होने पर ही पुष्टि होगी. वहीं ट्रॉमा इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ ने कहा कि आग न्यूरो आईसीयू से शुरू हुई, जहां 11 मरीज थे. अधिकांश कोमा में थे, इसलिए बचाव मुश्किल था. न्यूज 18 इंडिया के पास मौजूद पत्रों की कॉपी से साफ है कि हादसा टाला जा सकता था, लेकिन लापरवाही ने सब बर्बाद कर दिया. ट्रॉमा सेंटर की दीवारों में करंट फैल रहा था, छत से पानी टपक रहा था और इलेक्ट्रिक बोर्ड की वायरिंग खराब जैसी समस्याएं एक महीने से चली आ रही थीं. डॉ. अनुराग धाकड़ ने इन्हें बार-बार पत्रों के माध्यम से बताने की कोशिश की, लेकिन उनकी बातों को हर बार नजरअंदाज कर दिया गया.
डॉ. धाकड़ ने सबसे पहले 8 सितंबर को एसएमएस अस्पताल अधीक्षक को पत्र में निर्माणाधीन न्यूरो ओटी के कारण ट्रॉमा सेंटर के ऑपरेशन थिएटर के बोर्ड और दीवारों में करंट आने की शिकायत की और अनहोनी की आशंका जताई. इसके बाद 9 सितंबर को फिर एक पत्र में करंट से बड़े हादसे की चेतावनी दी गई. वहीं 1 अक्टूबर को नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट ने भी ‘विद्युत पैनल क्षतिग्रस्त, बड़ा हादसा संभव’ लिखा. लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया. इसके बाद हादसे के दो पहले यानी 3 अक्टूबर को डॉ. धाकड़ ने अधीक्षक को फिर से रिमाइंडर भेजा कि न्यूरो ओटी निर्माण से विद्युत पैनल, वीआरवी और डक्ट क्षतिग्रस्त हो रहे हैं, जिससे जानलेवा हादसा हो सकता है. इन पत्रों के बावजूद न एसएमएस प्रशासन ने निर्माण रोका, न सरकार ने हस्तक्षेप किया. नोडल अधिकारी ने भी कई बार शिकायत की थी. रिमांडर की अनदेखी के चलते बड़ा हादसा हो ही गया.
हाईकोर्ट ने भी लगाई कड़ी फटकार
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच जस्टिस महेंद्र कुमार गोयल और जस्टिस अशोक कुमार जैन ने सोमवार को झालावाड़ स्कूल छत गिरने की स्वत: संज्ञान में लिए गए याचिका पर सुनवाई के दौरान ट्रॉमा अग्निकांड का जिक्र किया. बेंच ने कहा, “सरकारी इमारतों में क्या हो रहा है? कहीं आग लग रही है, कहीं छत गिर रही है. एसएमएस ट्रॉमा तो नया बना है, वहां भी ये?” कोर्ट ने जर्जर भवनों पर सरकार की रिपोर्ट से असंतुष्टि जताई और 9 अक्टूबर तक बजट, खर्च और मरम्मत का रोडमैप पेश करने का आदेश दिया. यह भी चेतावनी दी कि रोडमैप पेश नहीं किया गया तो मुख्य सचिव को बुलाएंगे. एमएमएस अस्पताल हादसे के बाद फिलहाल सरकार डैमेज कंट्रोल पर लगी हुई है.
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