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October 8, 2025 7:03 am

मुनीर का मास्टरप्लान: अमेरिका को पोर्ट देकर तोड़ना चाहता है चीन का CPEC दबदबा

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Explainer: पाकिस्तान ने USA के सामने क्यों फेंका अरब सागर में पोर्ट बनाने का पासा, जानें मुनीर की इस चाल से भारत पर क्या होगा रणनीतिक असर

पाकिस्तान का अमेरिका को अरब सागर में नया बंदरगाह देने का प्रस्ताव केवल एक आर्थिक परियोजना नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय भू-राजनीति, आर्थिक हितों और अंतरराष्ट्रीय शक्ति समीकरणों का सम्मिश्रण है। इस कदम से न केवल अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में बदलाव आएगा, बल्कि चीन और भारत समेत पूरे क्षेत्र की रणनीति प्रभावित होगी।

 राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के सामने एक ऐसा पासा फेंक दिया है, जिससे अरब सागर की क्षेत्रीय राजनीतिक में नया ज्वार-भाटा उठने लगा है। दरअसल पाकिस्तान सरकार और आर्मी चीफ असीम मुनीर ने अमेरिका को अरब सागर में नया बंदरगाह बनाने का प्रस्ताव दिया है। इसके लिए मुनीर और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अमेरिका से 1.2 अरब डॉलर की मांग की है। पाकिस्तान के इस नये प्रस्ताव भू-राजनीति और क्षेत्रीय तनावों का नया अध्याय शुरू हो गया है।

 

पाकिस्तान ने क्यों चली अरब सागर में पोर्ट बनाने की चाल

हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान ने अमेरिका को अरब सागर के तट पर एक नया बंदरगाह बनाने और उसे संचालित करने का प्रस्ताव दिया है। यह प्रस्ताव पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के सलाहकारों की ओर से अमेरिकी अधिकारियों को प्रस्तुत किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इस योजना के तहत अमेरिका के निवेशकों द्वारा पाकिस्तानी शहर पासनी में एक टर्मिनल का निर्माण किया जाएगा। यह बंदरगाह परियोजना न केवल पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को दर्शाती है, बल्कि यह दक्षिण एशिया की जटिल भू-राजनीतिक परिस्थिति में एक नया मोड़ भी लेकर आ सकती है। इसलिए पाकिस्तान ने यह चाल चली है।

पासनी में बंदरगाह बनाने से भारत को क्या होगा नुकसान

पासनी मछली पकड़ने वाला एक छोटा शहर है। यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ग्वादर बंदरगाह के निकट स्थित है। ग्वादर बंदरगाह चीन की मदद से विकसित हुआ है और यह चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। पासनी ग्वादर से मात्र 100 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा, पासनी ईरान की सीमा से लगभग 160 किलोमीटर दूर है और भारत द्वारा विकसित किए जा रहे चाबहार बंदरगाह से भी करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसे में इस भू-राजनीतिक स्थिति के कारण पासनी बंदरगाह की परियोजना का असर भारत, चीन और ईरान सहित पूरे क्षेत्र पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि वह इस नए प्रस्ताव को लेकर अपनी रणनीति तैयार करे, क्योंकि चाबहार और ग्वादर के बीच क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा पहले से ही तीव्र है।

प्रस्ताव पर क्या हो सकती है अमेरिका की दिलचस्पी और रणनीति

पाकिस्तान के इस प्रस्ताव का मकसद अमेरिका को इस क्षेत्र में एक रणनीतिक कदम आगे बढ़ाने का मौका देना है। बंदरगाह के जरिए अमेरिका को अरब सागर और सेंट्रल एशिया के संवेदनशील क्षेत्रों में प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिलेगा। अमेरिकी निवेशकों द्वारा पासनी में एक टर्मिनल विकसित करना, पाकिस्तान के खनिज संसाधनों…विशेषकर तांबे और एंटीमनी जैसे महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच बढ़ाने का भी जरिया होगा। ये खनिज बैटरियों, अग्निरोधी सामग्रियों और मिसाइल निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।इस परियोजना की लागत लगभग 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर आंकी गई है, जिसका फंडिंग मॉडल पाकिस्तान और अमेरिका की संयुक्त पहल होगी। ऐसे समय में जब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति संकट में है और विदेशी निवेश घट रहे हैं, यह प्रस्ताव कुछ हद तक सकारात्मक माना जा सकता है।

भारत के साथ चीन पर भी होगा विपरीत असर

पाकिस्तान की इस चाल से चीन की Belt and Road Initiative (BRI) के तहत ग्वादर बंदरगाह की भूमिका महत्वपूर्ण है। चीन ग्वादर के फंडिंग और संचालन में सक्रिय है, और इसका पासनी बंदरगाह की योजना के साथ निकटता एक जटिल राजनीतिक समीकरण को जन्म देती है। अगर अमेरिका पासनी में निवेश करता है, तो यह सीधे तौर पर चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ एक रणनीतिक कदम माना जाएगा। दूसरी ओर, भारत के लिए भी यह बड़ा मामला है, क्योंकि चाबहार बंदरगाह के माध्यम से वह ईरान और मध्य एशिया के साथ अपने संबंध मजबूत कर रहा है। पासनी और चाबहार की निकटता भारत के लिए रणनीतिक तौर पर चिंता का विषय हो सकती है।

क्या है पाकिस्तानी रणनीति

यह पहल फिलहाल कोई आधिकारिक नीति नहीं है, बल्कि एक व्यावसायिक विचार है जो पाकिस्तान के अधिकारियों द्वारा दक्षिण एशिया में बढ़ती भू-राजनीतिक उथल-पुथल में अपनी भूमिका मजबूत करने के लिए प्रस्तुत किया गया है। जनरल आसिम मुनीर के असैन्य सलाहकारों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि इस प्रस्ताव पर कुछ अमेरिकी अधिकारियों के साथ बातचीत हुई है। हालांकि, व्हाइट हाउस या ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यह योजना ट्रंप प्रशासन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए पाकिस्तानी अधिकारियों की तरफ से पेश किए गए कई विचारों में से एक है। ऐसा माना जा रहा है कि इस कदम से पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना चाहता है।

मुनीर और ट्रंप के बीच बढ़ते रिश्ते

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच बेहतर संबंध विकसित हो चुके हैं। ट्रंप ने मई में पाकिस्तान और भारत के बीच हुए युद्धविराम का श्रेय खुद लिया था, जबकि भारत ने इस दावे को खारिज किया। पाकिस्तानी अधिकारियों ने ट्रंप की इस भूमिका के लिए सार्वजनिक तौर पर आभार जताया और उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया। एक पाकिस्तानी सलाहकार ने कहा, “युद्ध के बाद अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों की पूरी कहानी बदल गई है।“ इस बदलाव के मद्देनजर पासनी बंदरगाह की योजना पाकिस्तान की अमेरिका के प्रति रणनीतिक झुकाव को दर्शाती है।

Pooja Reporter
Author: Pooja Reporter

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