राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ साल पूरे हो गए हैं. विजयादशमी के मौके पर नागपुर में मुख्य कार्यक्रम आयोजित हो रहा है, जिसमें 21 हजार स्वयंसेवक शामिल हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के सौ साल पूरे हो गए हैं. स्थापना दिवस के शताब्दी वर्ष में मुख्य कार्यक्रम नागपुर के रेशमबाग मैदान में मुख्य कार्यक्रम आयोजित है, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बतौर मुख्य अतिथि मौजूद हैं. संघ के विजयादशमी उत्सव की शुरुआत सरसंघचालक मोहन भागवत की शस्त्र पूजा से हुई.
संघ प्रमुख ने अपने संबोधन में पहलगाम हमले का जिक्र करते हुए कहा कि धर्म पूछकर आतंकियों ने हिंदुओं की हत्या की. हमारी सरकार और सेना ने पूरी तैयारी के साथ उसका पुरजोर उत्तर दिया. उन्होंने कहा कि इस घटना से हमें दोस्त और दुश्मन का पता चला. हमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चेतना रखनी होगी. संघ प्रमुख ने कहा कि हमारी सेना का शौर्य पूरी दुनिया ने देखा.
उन्होंने कहा कि यह घटना हमें सिखा गई कि भले ही हम सभी के प्रति मित्र भाव रखते हैं और रखेंगे, लेकिन अपनी सुरक्षा के प्रति और अधिक सजग, समर्थ रहना पड़ेगा. मोहन भागवत ने कहा कि नक्सलियों पर शासन-प्रशासन की कठोर कार्रवाई भी हुई है. उग्रवाद को पनपने नहीं देना है. उन्होंने वैश्विक उथल-पुथल, पड़ोसी देशों में हिंसक आंदोलनों का भी उल्लेख किया और कहा कि हिंसा से बदलाव नहीं आ सकता.
मोहन भागवत ने अमेरिका के टैरिफ का जिक्र कर कहा कि देश को स्वदेशी से मजबूत करना होगा. निर्भरता मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए. उन्होंने पड़ोसी देशों में हुए आंदोलन का जिक्र किया और फ्रांस की क्रांति का भी उल्लेख कर कहा कि क्रांतियां कब निरंकुशता में बदल जाती हैं, पता नहीं चलता. हिंसा से बदलाव नहीं आ सकता.
उन्होंने कहा कि भारत में सामाजिक समस्याओं को लेकर सरकार सजग है. मोहन भागवत ने कहा कि युवाओं में देशभक्ति की भावना बढ़ी है. दुनिया आज भारत की ओर देख रही है. उन्होंने कहा कि विश्व में परिवर्तन जरूरी है. एकदम विपरीत व्यवस्था में हम इतना आगे बढ़ आए हैं. अब एकदम से मुड़ेंगे तो गाड़ी पलट जाएगी. हमें धीरे-धीरे छोटे-छोटे मोड़ से मुड़ना पड़ेगा. हमें सृष्टि की धारणा करने वाले धर्म का मार्ग विश्व को देना ही पड़ेगा.
मोहन भागवत ने कहा कि व्यवस्था बनाने वाला मनुष्य होता है. जैसा समाज है, वैसी व्यवस्थाएं चलेंगी. समाज के आचरण में परिवर्तन आना चाहिए. समाज को अपने आप को नए आचरण में ढालकर खड़ा होना पड़ता है, यह परिवर्तन की पूर्व शर्त है. उन्होंने कहा कि हम उस परिवर्तन का उदाहरण बनकर जीएं. मोहन भागवत ने कहा कि संघ का अनुभव है कि व्यक्ति परिवर्तन से समाज परिवर्तन और समाज परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन. तब जाकर दुनिया में परिवर्तन लाया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि आदत बदले बिना परिवर्तन नहीं होता. जैसा आपको देश चाहिए, वैसा आपको होना है. संघ की शाखा आदत बदलने की व्यवस्था है. मोहन भागवत ने कहा कि संघ को लालच भी मिला, राजनीति में उतरने का निमंत्रण भी मिला. लेकिन संघ ने स्वीकार नहीं किया. उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक 50 साल से शाखा में आ रहे हैं, फिर भी आ रहे हैं. क्योंकि आदत छूटनी नहीं चाहिए. इससे व्यक्तित्व और राष्ट्रभक्ति का निर्माण होता है. इसके लिए देश में एकता जरूरी है.
सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि बाहर से विचारधारा आई होगी, हम उनको पराया नहीं मानते. हम दुनिया की सभी विशिष्टताओं को सम्मान देते हैं. आज देश में विविधताओं को भेद में उभारने की कोशिश चल रही है. उन्होंने कहा कि हम एक बड़े समाज के अंग हैं. समाज, संस्कृति और राष्ट्र के नाते हम एक ही हैं और इस एकता के चलते हमारा आपस का व्यवहार सद्भावनापूर्ण रहना चाहिए. सबके अपने महापुरुष हैं, पूजा पद्धति है, सबका सम्मान होना चाहिए. मोहन भागवत ने कहा कि सद्भावनापूर्ण व्यवहार सबकी जिम्मेदारी होनी चाहिए.
मेरे जीवन में nagpur के दो महापुरुषों का बहुत बड़ा योगदान- कोविंद
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने संबोधन की शुरुआत विजयादशमी की बधाई से की. उन्होंने कहा कि मेरे जीवन में नागपुर के दो महापुरुषों का बहुत बड़ा योगदान है- डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर. पूर्व राष्ट्रपति ने डॉक्टर हेडगेवार से लेकर मोहन भागवत तक, संघ के अब तक के सफर में सरसंघचालकों के योगदान भी गिनाए.
उन्होंने कहा कि कानपुर की घाटमपुर विधानसभा सीट से बीजेपी का प्रत्याशी था, तब संघ से मेरा परिचय हुआ. जातिगत भेदभाव से रहित लोग संयोग से संघ के स्वयंसेवक और पदाधिकारी ही थे. उन्होंने कहा कि संघ में जातीय आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता. संघ सामाजिक एकता का पक्षधर रहा है. मेरी जीवन यात्रा में स्वयंसेवकों के साथ जुड़ाव और मानवीय मूल्यों से कैसे प्रेरणा मिली, इसका उल्लेख अपनी आत्मकथा में किया है, जो इस साल के अंत तक प्रकाशित हो जाएगी.
‘वाजपेयी ने कहा था मनुस्मृति नहीं, आंबेडकर स्मृति से चल रही सरकार’
पूर्व राष्ट्रपति ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एक रैली का जिक्र करते हुए कहा कि तब मैं बीजेपी अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष था. उन्होंने कहा कि अटलजी ने कहा था कि हमारी सरकार मनुस्मृति से नहीं, आंबेडकर स्मृति से चलती है. रामनाथ कोविंद ने डॉक्टर आंबेडकर और संघ के चिंतन में समानता गिनाई और कहा कि महिलाएं हमारी परिवार व्यवस्था में बराबर की सहभागी हैं. आज से वर्षों पूर्व संघ ने राष्ट्रीय सेविका वाहिनी की स्थापना की थी.
उन्होंने राजमाता विजयाराजे सिंधिया से सुषमा स्वराज तक, राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने वाली महिलाओं के नाम का उल्लेख किया और महात्मा गांधी का भी जिक्र किया. पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि महात्मा गांधी ने दिल्ली में संघ के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ की तारीफ की थी. बाबा साहब का एक वक्तव्य केसरी में छपा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं संघ को अपनेपन की दृष्टि से देखता हूं.
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि आपकी जो भी उपलब्धियां हैं, उनमें परिवार के अलावा देश और समाज का भी बहुत बड़ा योगदान है. विकास यात्रा में जो लोग पीछे छूट गए हैं, उनको साथ लेकर आगे बढ़ना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है. उन्होंने देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें.
इससे पहले, संघ प्रमुख मोहन भागवत और इस आयोजन के मुख्य अतिथि रामनाथ कोविंद ने संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार की प्रतिमा के समक्ष श्रद्धा सुमन अर्पित किए. संघ प्रमुख और मुख्य अतिथि ने संघ की प्रार्थना भी की. इस मौके पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी समेत कई नेता मौजूद हैं.
सरसंघचालक मोहन भागवत ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का स्वागत किया. संघ के विजयादशमी उत्सव में 21 हजार स्वयंसेवक शामिल हो रहे हैं. इस आयोजन के साथ ही संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर वर्षभर चलने वाले आयोजनों की शुरुआत हो गई है. संघ ने इन कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की हुई है.