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December 26, 2025 8:48 am

पुराने सिजेरियन सेक्शन के स्कार निशान पर मोलर गर्भावस्था का सफल इलाज,विश्व भर में ऐसे केवल नौ केसेस ही दर्ज 

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जयपुर। महिलाओं में मोलर प्रेग्नन्सी एक दुर्लभ स्थिति है, जिसमे भी पिछले सिजेरियन सेक्शन के स्कार निशान पर मोलर गर्भावस्था अति दुर्लभ है। विश्व भर से मेडिकल लिट्रेचर में केवल नौ ऐसे केसेस रिपोर्टेड हैं। राजस्थान अस्पताल, जयपुर की डॉ. प्रियंका ठाकुर शर्मा, कंसल्टेंट गायनेकोलॉजिस्ट ने एक महिला मरीज के सटीक निदान एवं बेहतरीन मैनेजमेंट के जरिये, ना केवल महिला की जान बचाई बल्कि उनका गर्भाशय भी पुनः स्वस्थ कर दिया।

इस सन्दर्भ में अधिक जानकारी देते हुए डॉ प्रियंका ने बताया कि, मरीज जब उनके पास आई तब उन्हें अत्याधिक रक्तस्त्राव, कम बीपी, व निरंतर पेट दर्द की शिकायत थी। मरीज ने बताया था कि करीब दो माह पूर्व ही उनके गर्भपात हो चुका है, और ऐसे ही छह माह पहले भी हुआ है। महिला को इससे पूर्व दो बच्चे हैं जो ऑपरेशन से हुए थे, वे स्वस्थ हैं।
प्रारम्भिक जांचो में कम हीमोग्लोबिन, कम बीपी, हाई पल्स रेट के चलते, हेमोपेरिटोनियम, अर्थात पेट में खून का भर जाना, की प्रबल आशंका हुई। उनके शब्दों में ” मुझे पेशंट में मोलर प्रेग्नन्सी होने की भी आशंका हुई, अल्ट्रासाऊंड करने पर यह निदान सही साबित हुआ, इसके पश्चात पुष्टिकरण के लिए सी टी एंजियोग्राफी की गयी; मोलर प्रेग्नन्सी एक हाई रिस्क स्थिति थी, क्योंकि ऑपरेशन में अत्याधिक ब्लीडिंग की पूर्ण संभावना थी।”
बहरहाल, सहमति, समझाइश आदि की प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद ऑपरेशन से पहले गर्भाशय को रक्त पहुंचाने वाली दोनों वाहिनियों को बंद (एम्बोलाइजेशन ) किया गया, दो यूनिट रक्त चढ़ाया गया, एच बी लेवल उपयुक्त होने पर जब ऑपरेशन करके गर्भाशय तक पहुंचे तो उसमे दो लीटर रक्त पाया गया। साथ ही पुराना स्कार कटा फटा पाया गया।

डॉ प्रियंका ने बताया कि, टूटे हुए टिश्यू, जमा हुआ रक्त आदि निकाल दिया गया, गर्भाशय को परत दर परत रिपेयर किया गया। इस तरह से सफलतापूर्वक प्रक्रिया सम्पन्न हुई। मरीज का सीरम बीएचसीजी का स्तर ऑपरेशन से पहले 55000 से घटकर ऑपरेशन के बाद 188 हो गया। बायोप्सी से आंशिक हाइडैटिडिफॉर्म मोल की जानकारी मिली। फॉलो अप में रिकवरी बहुत अच्छी और फास्ट पायी गयी।
संतुष्टि व्यक्त करते हुए डॉक्टर ने बताया कि, ऐसी स्थिति में इस चौंतिस वर्षीय महिला का गर्भाशय निकालना एक अनुचित विकल्प था एवं सही समय पर निदान, मैनेजमेंट एवं परिजनों की जागरूकता ने जटिलताओं को कम कर दिया। कदाचित उन्हें मौत के मुँह से भी बचा लिया।

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