भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका और ट्रंप को पहला झटका तब दिया था, जब ट्रंप ने कहा था कि भारत औऱ पाकिस्तान का सीजफायर मैंने कराया है। दूसरा झटका एससीओ समिट में शामिल होकर दिया। एससीओ समिट से जो तस्वीरें निकलकर सामने आई उसे दुनियाभर में देखा गया। अपने अपने हिसाब से उस पर चर्चाएं भी की गई। अब तीसरा झटका भारत सरकार की तरफ से दिया गया है।
यूएस ट्रेजरी बिल में निवेश को भारत सरकार लगातार कम कर रही है। इसके बजाए सोने के भंडार को बढ़ाने पर भारत का फोकस है। आपको बताते चले कि जब रूस और यूक्रेन के बीच 2022 में शुरू हुआ था। उस वक्त रूस का लगभग 200 बिलियन डॉलर ट्रेजरी बिल या फिर डॉलर के रूप में अमेरिकी बैंकों में जमा था। उस पैसे को अमेरिका के द्वारा फ्रीज कर दिया गया था। आज अमेरिका और भारत के बीच जैसे हालात चल रहे हैं। भारत का लगभग 700 अरब रुपए अमेरिकी बैकों में ट्रेजरी बिल्स और बाकी चीजों में जमा है। उसे अब भारत कब कर रहा है।
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क्या होती है ट्रेजरी बिल
ट्रेजरी बिल्स अप्लपाकालिक सरकारी प्रतिभूतियां हैं। जिनकी परिपक्वता अवधि (मैच्यूरिटी पिरीयड) एक वर्ष या उससे कम होती है। आमतौर पर 4 सप्ताह, 13 सप्ताह, 26 सप्ताह या 52 सप्ताह इसकी अवधि होती है। ये डिस्काउंड पर बेचे जाते हैं। यानी आप इन्हें अंकित मूल्य से कम कीमत पर खरीदते हैं और परिपक्वता पर आपको पूरा अंकित मूल्य प्राप्त होता है। अंतर ही आपका लाभ (ब्याज) होता है। ट्रेजरी बिल्स को लगभग जोखिम मुक्त माना जाता है क्योंकि इन्हें अमेरिकी सरकार का समर्थन प्राप्त है और डिफॉल्ट की संभावना नगण्य है। अगर इसे आसान भाषा में समझें तो एक तरह का कर्ज होता है। अमेरिका को पैसे चाहिए। वो आपसे पैसे लेकर उसके बदले एक कागत दे रहा है, जिसमें वादा किया जा रहा है कि आपको एक साल के बाद 100 रुपए देगा, आप आज हमें 97 रुपए दे दो। अमेरिका सुपरपावर है। डॉलर सबसे पावरफुल करेंसी है। उसे पूरे फाइनेंस इंस्टीट्यूशन में रिस्क फ्री एसेट कहा जाता है। अमेरिका के पास इतना कर्जा है कि उस कर्ज को चुकाने के लिए और कर्ज ले रहा है।
अमेरिकी ट्रेजरी सिक्योरिटीज़ के धारक
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आँकड़े दर्शाते हैं कि जून में भारत के अमेरिकी ट्रेजरी बिल निवेश में पिछले वर्ष की तुलना में गिरावट आई है, जबकि इस दौरान उसके स्वर्ण भंडार में वृद्धि हुई है। फिर भी, भारत सऊदी अरब और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए, अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में शीर्ष 20 निवेशकों में अपनी स्थिति बनाए हुए है। जून 2025 में इसकी होल्डिंग्स का मूल्य 227 बिलियन डॉलर था, जो पिछले वर्ष जून में 242 बिलियन डॉलर था। डॉलर होल्डिंग्स में गिरावट, भू-राजनीतिक तनावों और व्यापार विवादों के कारण, विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता लाने की व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रवृत्ति का संकेत देती है।
सोने के भंडार पर फोकस कर रहा भारत
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि भारतीय मुद्रा भंडार में लगातार वृद्धि देखी गई है, जिसके साथ-साथ विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में विविधता भी आई है। यही कारण है कि कुछ देशों, खासकर भारत, चीन और ब्राज़ील में इस स्तर पर उतार-चढ़ाव देखा गया है। पिछले बारह महीनों में डॉलर में देखी गई अस्थिरता के बीच टी-बिलों का बकाया स्टॉक डॉलर के मूल्यांकन को दर्शाता है।
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, इस समयावधि में उसने लगभग 39.22 मीट्रिक टन सोना अर्जित किया। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता ने कहा कि यूएसटी प्रतिफल में गिरावट के बावजूद, भारत की यूएसटी होल्डिंग एक वर्ष में 14.5 बिलियन डॉलर कम हो गई है, जो दर्शाता है कि यूएसटी से दूर विदेशी मुद्रा भंडार होल्डिंग में विविधीकरण हुआ है।
इसी अवधि में, स्वर्ण भंडार में वृद्धि हुई है। यह बदलाव विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता लाने और अमेरिका-विशिष्ट कारकों के कारण पुनर्मूल्यांकन हानि के जोखिम को कम करने के प्रयास को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी सरकार के बिगड़ते राजकोषीय मानकों ने प्रतिफल को ऊंचा बनाए रखा है।
ट्रंप 2.0 में अमेरिकी ट्रेजरी बिल होल्डिंग्स अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंची
डोनाल्ड ट्रंप के पदभार ग्रहण करने से पहले दिसंबर में भारत की अमेरिकी ट्रेजरी बिल होल्डिंग्स अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच गई थीं। 227 अरब डॉलर के ट्रेजरी बिलों का अधिकांश हिस्सा विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा है, जो 22 अगस्त, 2025 तक 690 अरब डॉलर हो गया। जापान और ब्रिटेन के बाद, चीन तीसरा सबसे बड़ा अमेरिकी ट्रेजरी बिल धारक है और उसने अपनी हिस्सेदारी कम कर ली है। मुख्यभूमि चीन की होल्डिंग्स जून 2025 में 756 अरब डॉलर पर आ गईं, जो जून 2024 के 780 अरब डॉलर से कम है। इसके विपरीत, इस अवधि के दौरान इज़राइल ने इस श्रेणी में अपने निवेश का उल्लेखनीय विस्तार किया है।






