ईरान से यूक्रेन तक एक भी सबक मिला है कि जब भी संकट आए तो पड़ोसी ही काम आते हैं. अमेरिका और पश्चिमी ताकतें सिर्फ अपने हित के हिसाब से आपकी मदद करती हैं, लेकिन मुश्किल वक्त में वे साथ कभी नहीं आते.
ईरान-यूक्रेन जंग ने कई भ्रम से पर्दा हटा दिया. 10 दिन पहले जब शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन ने एक बयान जारी कर इजरायल के हमलों की निंदा की तो भारत ने उस बयान से खुद को अलग कर लिया. लेकिन गुरुवार को ‘ब्रिक्स’ की ओर से जारी बयान में भारत भी एक सुर में बोला.
इसमें ईरान के खिलाफ हुए सैन्य हमलों पर चिंता जताई गई है. ब्रिक्स का यह बयान ऐसे वक्त आया है, जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की मीटिंग के लिए चीन में थे. भारत का यह रुख बताने के लिए काफी है कि क्यों रिजनल पार्टनर अमेरिका की लीडरशिप वाले पश्चिमी गठबंधन से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.
नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भारत की विदेश नीति का एक फार्मूला तय किया ‘नेबरहुड फर्स्ट’, यानी पड़ाेसी प्रथम. इसी के तहत श्रीलंका जब दिवालिया होने की कगार पर था तो भारत पूरी ताकत से उसे बचाने में जुट गया. मालदीव में आर्थिक हालात खराब हुए तो भारत ने अरबों रुपये देकर उसे बचाया.
श्रीलंका को हर तरह की मदद दी और भूटान को छोटे भाई की तरह सपोर्ट किया. आज ये मुल्क भारत के बिना चल नहीं सकते. हालांकि, चीन की चालबाजी, बांग्लादेश की हरकतें और पाकिस्तान की बदमाशी भारत की इस पॉलिसी में कोढ़ में खाज की तरह हैं.
भारत कई बार दोस्ती का हाथ बढ़ा चुका है, लेकिन बात नहीं बनती. मगर अन्य रिजनल पार्टनर्स के साथ भारत का रिश्ता बेहद खास है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
अमेरिका का समर्थन परिस्थितियों पर निर्भर होता है, उसके सिद्धांतों पर नहीं. यूक्रेन के मामले में भी वही हुआ.
प्रोफेसर शांतनु मुखर्जी, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
जब संकट आता है, तो न अमेरिका आपकी सीमाओं की रक्षा करता है, न फ्रांस. तब नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देश कूटनीतिक बैकअप बनते हैं.
रिटायर्ड ब्रिगेडियर आरपी सिंह, कूटनीतिक मामलों के जानकार.
ईरान को तरजीह क्यों?
भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद ईरान को तरजीह दी है क्योंकि इसके पीछे स्ट्रेटजिक, एनर्जी और क्षेत्रीय हित हैं. भारत को पता है कि ईरान उसका दशकों पुराना और भरोसेमंद दोस्त रहा है, जबकि अमेरिका तो अपनी जरूरतों के हिसाब से दोस्त बदलता रहता है. हाल ही में जिस तरह ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ पींगे बढ़ानी शुरू की हैं, वह ताजा उदाहरण है.
भारत को ये भी पता है कि अमेरिका की विदेश नीति अक्सर अल्पकालिक रणनीतिक लक्ष्यों पर आधारित रही है, उसने कई बार अपने पुराने सहयोगियों को संकट में छोड़ दिया है. अफगानिस्तान से अचानक वापसी इसका ताजा उदाहरण है. इसके उलट, भारत की नीति अधिक स्पष्ट और स्थिर है. वह जिसे दोस्त मानता है, उसके साथ हर हालात में खड़ा रहता है.
जब संकट आता है, तो न अमेरिका आपकी सीमाओं की रक्षा करता है, न फ्रांस. तब नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देश कूटनीतिक बैकअप बनते हैं.
रिटायर्ड ब्रिगेडियर आरपी सिंह, कूटनीतिक मामलों के जानकार.
रिटायर्ड ब्रिगेडियर आरपी सिंह, कूटनीतिक मामलों के जानकार.

Author: Geetika Reporter
ताजा खबरों के लिए एक क्लिक पर ज्वाइन करे व्हाट्सएप ग्रुप