गर्मी की शुरुआत के साथ ही कैलिफोर्निया स्थित डेथ वैली का नाम कहा-सुना जाने लगता है. खड़ी चट्टानी पहाड़ियों और बंजर जमीन वाली इस वैली को दुनिया की सबसे गर्म जगह कहा जाता रहा. हालांकि इस नाम को पीछे करते हुए अफ्रीकन देश इथियोपिया का नाम आ चुका है. यहां कुछ हिस्से ऐसे हैं, जहां धरती के नीचे इतनी हलचल है कि ऊपर की तरफ जीवन लगभग है ही नहीं. पूरे इलाके में नमक की झीलें हैं, जो गर्मियों में सूख जाती हैं. यहां की हवा में एसिड की तीखी गंध और धुआं दिखाई देगा.
कभी रहा होगा रेड सी का हिस्सा
124 मील लंबा और 31 मील चौड़ा डेनेकिल डिप्रेशन किसी समय पर रेड सी का हिस्सा रहा होगा. वक्त के साथ-साथ ज्वालामुखियों से इतना लावा निकला कि एक पूरा का पूरा आइलैंड की तरह का स्ट्रक्चर बन गया. नासा की अर्थ ऑब्जर्वेटरी का मानना है कि समुद्र तल से नीचे स्थित ये जगह और नीचे जा रही है, और एक दिन पानी में मिल जाएगी.
खोजकर्ताओं ने कह दिया लैंड ऑफ डेथ
इथियोपिया के डेनेकिल डिप्रेशन को धरती की सबसे एलियन जगह भी कहा जाता है, जहां कोई आता-जाता नहीं. इसके कई और नाम हैं, जैसे गेटवे टू हेल और अफार डिप्रेशन. बेहद बहादुर कहलाते ब्रिटिश खोजकर्ता विल्फ्रेड पैट्रिक थेसिगर ने इसे लैंड ऑफ डेथ भी कहा था, जहां कुछ घंटे भी नहीं बिताए जा सकते. यहां केवल साइंटिस्ट आते रहे, और जोखिम उठाने वाले ट्रैवलर. अब पाया गया है कि यहां एक्सट्रीमोफाइल्स भी हैं, यानी ऐसी वनस्पतियां जो धरती के सबसे एक्सट्रीम मौसम को झेलने के लिए ही बनी हैं. हालांकि इनपर अभी खास शोध नहीं हो सका है.
डेनेकिल डिप्रेशन में गर्मी के कई कारण
एक वजह है धरती के नीचे की हलचल. यहां नीचे तीन टेक्टॉनिक प्लेटें है, जो काफी तेजी से एक-दूसरे से दूर जा रही हैं. इस अंदरुनी मूवमेंट का असर ऊपर भी दिखता है. इस पूरे क्षेत्र में कई एक्टिव ज्वालामुखी हैं, जिनसे लावा और धुआं निकलता रहता है. साल के किसी भी मौसम में जाएं, यहां की हवा में आग की धधक और जलने की गंध मिलती है.
वॉल्केनो बना हुआ है सक्रिय
यहां अर्टा एले नाम का ज्वालामुखी है, जो लगभग सवा 6 सौ मीटर ऊंचा है. इसके शिखर पर दुनिया की पांच में से दो लावा झीलें बनी हुई हैं. साल 1906 में यहां पहली लावा झील बनी, ये पानी नहीं बल्कि खौलते हुए लावा से बनी है. हैरतअंगेज तौर पर ये लावा ठंडा नहीं पड़ता, बल्कि लगातार खदबदा रहा है. टेक्टॉनिक प्लेट्स को ही वैज्ञानिक इसकी जड़ में मानते हैं. इसके अलावा कई छोटे-बड़े ज्वालामुखी हैं, जो सक्रिय हैं.
नदी बन जाती है नमक
धरती की भीतर लगी हुई आग की वजह से ऊपर की सतह भी बाकी दुनिया से अलग है. यहां अलग तरह की चट्टानें और मिट्टी, जो भुरभुरी है. देखने पर ये कोई दूसरा ग्रह लगता है. वैसे तो डेनेकिल में पानी के कई सोते और एक नदी भी है, जिसे अवाश नदी कहते हैं, लेकिन ये भी अलग है. नदी लंबी होने के बावजूद कभी समुद्र तक नहीं पहुंच पाती, बल्कि कुछ-कुछ महीनों में सूख जाती है और नीचे नमक इकट्ठा हो जाता है. ज्वालामुखी और गर्म पानी के सोतों की वजह से ये नदी पूरी तरह से एसिडिट हो चुकी. हालांकि यही चीज वहां रहने वालों के काम आती है. वे नमक जमा करके पास के बाजारों में बेचने जाते हैं. इसे यहां वाइट गोल्ड कहा जाता है क्योंकि इसके अलावा सोर्स ऑफ इनकम दूसरा कुछ नहीं.
समुद्र तल से नीचे स्थित है
एक और बात डेनेकिल को सबसे गर्म बनाती है, वो है समुद्र तल से इसकी पोजिशन. तल से लगभग सवा सौ मीटर नीचे स्थित होना इसे और ज्यादा गर्म बना देता है. यहां सालभर में बारिश भी सौ से 2 सौ मिलीमीटर तक ही होती है. बता दें कि हमारे देश में औसत वर्षा लगभग डेढ़ सौ सेंटीमीटर है, वहीं उत्तर-पूर्वी भारत और पश्चिमी तट पर सालाना लगभग 400 सेंटीमीटर से भी ज्यादा बारिश होती है. तो अनुमान लगा सकते हैं कि मिलीमीटर में वर्षा कितनी कम होगी.
अफार ट्राइब का बसेरा
इतनी भीषण गर्मी के बाद भी यहां अफार जनजाति के लोग रहते हैं. घुमंतु समुदाय के ये लोग सालभर डेनेकिल में रहने की बजाए वे आसपास घूमते रहते हैं. खासकर गर्मियों के मौसम में पड़ोसी इलाकों में चले जाते हैं. नमक और केमल फार्मिंग इनके रोजगार का बड़ा जरिया है. इसके अलावा यहां किसी तरह की खेती-किसानी नहीं होती. ये लोग भी डेनेकिल के आसपास रहते हैं, न कि इसके मेन हिस्से में. लेकिन चूंकि ये डेनेकिल के सबसे करीब बसे हुए लोग हैं, इसलिए इनके नाम पर इसे अफार डिप्रेशन भी कहते हैं.
विषम हालातों में भी कुछ जीव जीवित
डेनेकिल में कुछ खास तरह की वनस्पतियां और कीटाणु भी पल रहे हैं. वैज्ञानिक भाषा में इन्हें एक्सट्रीमोफाइल कहा जाता है, यानी वो चीजें, जो बेहद विषम हालातों में भी जिंदा रह सकें. इनकी स्टडी से साइंटिस्ट्स ये भी समझना चाह रहे हैं कि क्या आगे चलकर एक्सट्रीम हालातों में दूसरे ग्रहों पर जीवन संभव हो सकेगा.
क्या यहीं से हुई थी मानव सभ्यता की शुरुआत!
कई एंथ्रोपोलॉजिस्ट मानते हैं कि दुनिया में इंसानी विकास इसी जगह से शुरू हुआ होगा. साल 1974 में यहां एक कंकाल मिला, जो ऑस्ट्रेलोपिथेकस नस्ल का था. ये इंसान के सबसे पुराने पूर्वज माने जाते हैं. इसके बाद भी यहां से कई प्राचीन नस्लों के अवशेष यहां पर मिल चुके, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि शायद डेनेकिल में ही इंसानों का विकास होना शुरू हुआ होगा. वैसे अब तक इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है.
यहां एक झील भी है, जिसे किलर लेक या अराथ कहते हैं. इसके आसपास काफी सारे पक्षियों के मृत शरीर दिखेंगे. ये वो पक्षी होते हैं जो कहीं आते-जाते यहां ठहर जाते हैं और झील के पास जाते ही खत्म हो जाते हैं. दरअसल इसके पानी में कार्बन डाईऑक्साइड और बड़ी मात्रा में मीथेन गैस पाई जाती है, जो इसका कारण बनती है.
पहली बार यहां साल 2013 में खोजकर्ता पूरे तामझाम के साथ आए थे, लेकिन जल्द ही वापस लौट गए. वैज्ञानिक दोबारा आए और इस बार वहां की जमीन, नमक और पानी के खौलते हुए सोतों से सैंपल लेकर गए. यहीं पता लगा कि यहां कुछ खास तरह के बैक्टीरिया पनप रहे हैं, जो दुनिया में और कहीं नहीं दिखे.
सैलानी जा रहे यहां
एलियन प्लानेट की तरह लगने वाली इस जगह पर टूरिज्म भी शुरू हो चुका. हालांकि इसके लिए काफी नियम होते हैं और पूरी तरह से फिट लोग ही यहां जा सकते हैं. यात्रा निकटस्थ शहर विक्रो से सुबह 4 बजे शुरू होती है, जो कुछ घंटों तक चलती है. हेलीकॉप्टर राइड भी मिलने लगी है. टूरिस्ट्स के साथ गाइड और डॉक्टर होते हैं. उन्हें खास तरह के जूते-कपड़े पहनने होते हैं ताकि गर्मी और एसिडिस हवा का असर कम से कम हो. जियोथर्मल इलाकों से गुजरते हुए बहुत सतर्क रहना होता है. ये सॉल्ट क्रस्ट है, जो कभी भी नीचे धसक सकता है और अंदर लावे से भरी जमीन हो सकती है. यहां की यात्रा नवंबर से मार्च के बीच ही होती है.