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November 22, 2024 1:15 pm

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Dr. Ambedkar Jayanti 2024: बाबा साहेब आंबेडकर की वकालत की दुनिया में कितनी धाक थी?

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किसी का पक्ष लेना और उसे ठीक से प्रस्तुत करना आम बोलचाल की भाषा में ‘किसी की वकालत करना’ कहलाता है. भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर एक जाने माने वकील भी थे. उन्होंने न केवल अपने मुवक्किलों के लिए वकालत की बल्कि समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के लोकतांत्रिक मूल्यों की भी वकालत की. इसलिए, उनकी गिनती आज भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वकीलों में होती है.

डॉ. आंबेडकर ने एक लक्ष्य को ध्यान में रखकर क़ानून की पढ़ाई की. उन्होंने जीवनभर उसी लक्ष्य के साथ काम किया.

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उन्होंने वकालत का पेशा पेशेवर उत्कृष्टता या उन्नति के लिए नहीं बल्कि उस दौर में भारत के लगभग छह करोड़ अछूतों और दबे-कुचले दलितों को न्याय दिलाने के लिए चुना था.

14 अप्रैल की उनकी जन्मतिथि के मौके पर हम आपको बताते हैं कि वे वकील कैसे बने और उन्होंने अपने मुवक्किलों के लिए कौन से प्रमुख मामले में पैरवी की और उन मामलों का नतीजा क्या रहा.

बाबा साहेब की शिक्षा

1913 में बाबा साहेब बॉम्बे के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय चले गए थे. इसके लिए उन्हें बड़ौदा के सयाजीराव गायकवाड़ महाराज ने आर्थिक मदद मिली थी.

यह आर्थिक मदद के बदले में उन्हें बड़ौदा के राजपरिवार के साथ एक अनुबंध करना पड़ा था कि अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें बड़ौदा सरकार के अधीन नौकरी करनी थी.

साल 1913 में वे अमेरिका पहुंचे. अमेरिका में उनका परिचय दुनिया भर के विभिन्न विचारकों और उनकी विचारधाराओं से हुआ. उससे उनके सामने जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो गया था. अमेरिका में पढ़ाई के दौरान कई जगहों पर इस बात का ज़िक्र मिलता है कि वे 18-18 घंटे तक पढ़ाई किया करते थे.

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इस अवधि के दौरान उन्होंने अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, एथिक्स और मानवविज्ञान का अध्ययन किया. 1915 में ‘भारत का प्राचीन व्यापार’ विषय पर थीसिस प्रस्तुत करने के बाद उन्होंने एमए की डिग्री हासिल की. 1916 में उन्होंने ‘भारत का राष्ट्रीय लाभांश’ थीसिस प्रस्तुत की.

डॉ. आंबेडकर जितना पढ़ रहे थे, उतना ही उनके पढ़ने और जानने की भूख बढ़ रही थी. उन्होंने बड़ौदा के महाराज सायाजीराव गायकवाड़ से आगे की पढ़ाई करने की अनुमति मांगी. उन्हें वह अनुमति मिल भी गई.

इसके बाद वो अर्थशास्त्र और क़ानून की उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए लंदन पहुंचे. उन्होंने अर्थशास्त्र में शिक्षा के लिए लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनामिक्स में दाख़िला लिया, जबकि क़ानून की पढ़ाई के लिए ग्रेज़ इन में नामांकन लिया.

1917 में, बड़ौदा सरकार की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई और अफ़सोस के साथ उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. इस बीच उनके परिवार को आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. इस स्थिति को देखते हुए ही आंबेडकर ने भारत लौटने का फ़ैसला लिया था.

अनुबंध के मुताबिक उन्होंने बड़ौदा सरकार के लिए काम करना शुरू कर दिया. वहां उन्हें अन्य कर्मचारियों से अत्यधिक जातिगत भेदभाव सहना पड़ता था. यहां तक ​​कि बड़ौदा में रहने के लिए जगह ढूंढने में भी उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. फिर उन्होंने बंबई वापस लौटने का फ़ैसला किया.

बड़ौदा सरकार के साथ काम करने के अपने अनुभव के बारे में आंबेडकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ”मेरे पिता ने मुझे पहले ही कह दिया था कि इस जगह काम मत करना. शायद उन्हें इस बात का अंदाज़ा था कि वहां मेरे साथ कैसा व्यवहार होगा.”

Sanjeevni Today
Author: Sanjeevni Today

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